25 मार्च 2012

ग़ज़ल....... ‘वज़ूद आदमी का गलने लगता है’....-मनोहर चमोली ‘मनु’

 ग़ज़ल....... ‘वज़ूद आदमी का गलने लगता है’....

-मनोहर चमोली ‘मनु’


झूठ ओढ़ा और चेहरा बदलने लगता है।
यकीनन वजूद आदमी का गलने लगता है।।


दोपहर का सूरज चाहे लाख आँख दिखाए।
शाम आते ही यारों वो तो ढलने लगता है।।


बुरा कहो ताना दो या जी दुखाओ माँ का।
माँ का दिल माँ का है फिर पिघलने लगता है।।


वो अकेला था चाहे आँख का तारा ‘मनु’।
बाद उसके घर उसका फिर संभलने लगता है।।

2 टिप्‍पणियां:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।