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देर रात तक जागा मन
क्यों कर भटका मेरा मन
तेरे दर पे जा पहुँचा
तनहाई से भागा मन
भीतर हौले से रखना
कोमल धागे जैसा मन
टिकता अब ये कहीं नहीं
जब से तुझसे लागा मन
याद किया तो हाज़िर तू
कैसे जाना मेरा मन
तुझसे मिलने की हसरत
कभी न चाहे नागा मन
--
-मनोहर चमोली ‘मनु’
30 अप्रैल 2012..सुबह-सवेरे।
देर रात तक जागा मन
क्यों कर भटका मेरा मन
तेरे दर पे जा पहुँचा
तनहाई से भागा मन
भीतर हौले से रखना
कोमल धागे जैसा मन
टिकता अब ये कहीं नहीं
जब से तुझसे लागा मन
याद किया तो हाज़िर तू
कैसे जाना मेरा मन
तुझसे मिलने की हसरत
कभी न चाहे नागा मन
--
-मनोहर चमोली ‘मनु’
30 अप्रैल 2012..सुबह-सवेरे।