11 मई 2012

दबे पाँव तब आना भी

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चुप रहकर पछताना भी

ख़ुद से फिर टकराना भी

पैर पटक कर जाओगे

दबे पाँव तब आना भी

अगर,मगर,लेकिन ये सब

लगते हैं बचकाना भी

जैसे जिया सर उठाकर
ऐसे ही मर जाना भी

जीवन की रेल पेल में
कभी याद तो आना भी
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
डायरी से- 10.10.2010

2 टिप्‍पणियां:

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