यूँ नज़रें फिराकर मिलेगा क्या
अपनों को गिराकर मिलेगा क्या
जो झूठ खरीदें बेचें उनको
कसमें भी दिलाकर मिलेगा क्या
जो बात बात पे रूठे उसको
यूँ सर पे बिठाकर मिलेगा क्या
जो फकीरों का फकीर हो उसे
सपने भी दिखाकर मिलेगा क्या
मैं कहीं भी गया लौटा तो, अब
भूलों को गिनाकर मिलेगा क्या
नमक साथ रखती है ये दुनिया
खुद के जख़्म दिखाकर मिलेगा क्या.
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
11 मई 2012, सुबह-सवेरे
-मनोहर चमोली ‘मनु’
11 मई 2012, सुबह-सवेरे
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