28 जुल॰ 2012

'आंसू बन गए मोती '

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'आंसू बन गए मोती '



ब्याही गई बेटी

पहाड़ की
सुदूर पहाड़ पर
विदाई पर वो खूब रोई
ससुराल पहुंचने तक
गालों पर लुढ़कते रहे आंसू
बन गए मोती तब
जब देखा उसने ससुराल के पहाड़ से
अपना पहाड़ी गांव।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’

[25-july 2008]

‘तुम्हारा आना और जाना’

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‘तुम्हारा आना और जाना’

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तुम्हारा आना

जैसे महकती हवा
चमकती सुबह
फूल का खिलना
चिड़िया का चहकना

तुम्हारा जाना
पत्तों का गिरना
शाम का ढलना
मन उदास होना
नदी का मौन बहना

अब जब भी आना
जाने के लिए मत आना।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’

‘वो चूम ले मुझे बार बार’

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‘वो चूम ले मुझे बार बार’
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इस बरस भी बारिश खूब हुई
मैं चाहती थी तर-बतर भीगना
चिड़िया की तरह फुदकना
आँ कर के बूंदों को पीना


और बारिश में जी भर लोटना
देह से सावन का परिचय कराना
आसमान को अपने ऊपर उड़ेलना

  टप-टप पानी की लय की तरह
मैं चाहती थी गुनगुनाना


पहली पहली बूंदों की तरह उछलना
झूमती फुहारों की तरह नाचना
मैं चाहती थी हवा से प्यार करना
कि वो चूम ले मुझे बार-बार
हाँ इस बरस भी रोक लिया खुद को मैंने
अनायास, यूँ ही या जानबूझ कर?


जानती हूं कि कोई नहीं रोकता मुझे
कोई मुझे टोकता भी नहीं
खिड़कियों से झांक लो
हथेलियों से छू भर लो बस बूंदों को
खोज रही हूं कई बरसों से मैं
कि ये किस किताब में लिखा है?
अब तो पेड़ हो गई हूँ


सावन आ और जा रहे हैं
चाहती हूं अब बस ठूंठ हो जाना...।।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’
03 जुलाई 2011

24 जुल॰ 2012

_________ 'पहाड़'...-मनोहर चमोली ‘मनु’

पहाड़
विराट है
उसमें नैतिकता है
वो मानवता का संबल है
वह दंभी नहीं
अंहकारी भी नहीं
सिर उठाकर जीने की
ताकत देता है पहाड़।

11 जुल॰ 2012

शैक्षिक पलाश दिसंबर-जनवरी 2012 के अंक में प्रकाशित आलेख-

 पाठ्य पुस्तक से इतर भी हो सकता है भाषा शिक्षण

 

भाषा शिक्षण पर आसानी से विमर्श हो सकेए सो नीचे एक छोटा सा अंश दिया गया है। यह अंश नंदन बाल पत्रिका के जून 2011 में प्रकाशित कहानी अंगूर खट्टे हैं से लिया गया। इस अंश को ही लेने में कोई विशेष कारण नहीं है। बस भारतीय परिवेश में रची.बसी शुरुआती कहानी की प्रारंभिक पंक्तियां हैं। लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थीए तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया। लाली उसके पास गई। जिराफ ने लाली को देखा। ष्ष्अंगूर खट्टे हैं।ष्ष्.कहकर वह मुसकराकर चला गया। ष्ष्हुंहए मेरा मजाक उड़ा रहा था!ष्ष् .लाली गुस्से में बड़बड़ाई।ष् उपरोक्त मात्र बयालीस शब्दों से हम भाषा के विस्तार मंे जा सकते हैं। यही नहीं व्याकरण की दृष्टि से भी कक्षा.कक्ष में इसी अंश से कई वादन चल सकते हैं। साथ ही इसी अंश से गणितए विज्ञानए पर्यावरणए सामाजिक विज्ञानए कला के साथ.साथ गृह विज्ञान विषयक छोटी.बड़ी बातें.चर्चा.गृह कार्यए बातचीत और लेखन भी किया जा सकता है।


इसी अंश से क्योघ् हम किसी भी किताब से.किसी भी अखबार से कोई अंश यूं ही चुन लेंए तो हम पाते हैं कि छोटे से अंश में.पांच.सात पंक्तियों में भाषा शिक्षण के कई रहस्य छिपे हुए हैं। यह कोई नया विमर्श भी नहीं है। बस इसे व्यावहारिकता में लाने की आवश्यकता है। उपरोक्त अंश को हम किसी कक्षा विशेष से बांधकर भी नहीं देखना चाहते। कक्षावार बातचीत.चर्चा और शिक्षण को व्यापक या सूक्ष्म किया जा सकता है। बहरहाल हम बुनियादी और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के भाषा शिक्षण को केन्द्र में रखकर चर्चा को विस्तार देने की कोशिश करेंगे। 
हम सभी जानते हैं कि अध्यापक कक्षा.कक्ष की और शिक्षण व्यवस्था की धूरी है। वह चाहे तो सभी विषयों का शिक्षण भाषा की कक्षा में कर सकता है। दूसरे शब्दों में यहां हम भाषा ;हिन्दीए अंग्रेजी और संस्कृतद्ध को केन्द्र में रखते हुए अन्य विषयों के साथ भाषा का संबंध को जोड़ते हुए विस्तार में जाने का प्रयास करेंगे।
हम जानते ही हैं कि जब कोई भी औसत बच्चा पहले दिन स्कूल में आता है तो वह कोरा नहीं होता। उसके पास लगभग पांच हजार शब्दों की स्मृति अपने नजरिए से उनके अर्थों के साथ होती है। वह मोटे तौर पर उनके रूपएगुण स्वभाव से भी परिचित होता है। मसलन वो गरम तवे को जानता है। एक बार छूने से मिले उसके स्वभाव से परिचित है। वह चायए दूध और दवाई की गंध को स्वादानुसार पहचानता है। भले ही आप उसका रंग एक कर दें या एक जैसे पात्र में दे दें। वह कटोरीए गिलासए चम्मच और थाली को उनके आकार के हिसाब से पहचानता भी है और जानता भी है कि किस पात्र को किस काम में लाया जाता है। मसलन अगर आप चाय के लिए बरतन मांगेगे तो वह गिलास या कप ही लाएगाए थाली नहीं। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि बच्चे के लिए भाषा शिक्षण कक्षा का हिस्सा बाद में बनता हैए पहले वह घर में ही दुधबोलीे से अपनी भाषा का नजरिया बनाने लगता है।
अब शिक्षक पर है कि वो कोर्स की किताबी दुनिया से बाहर हट कर भी भाषा शिक्षण के तकनीकी पक्ष को छोड़ते हुए बच्चे की भाषाई योग्यता में विकास कैसे करे। मसलन हम कहानी के उसी छोटे से अंश के पहले वाक्य से शुरू करते हैं। ष्लाली लोमड़ी जंगल में घूम रही थीए तभी उसे एक जिराफ अंगूर तोड़ता दिखाई दिया।ष् हम चर्चा कर सकते हैं। विस्तार के लिए सवाल बना सकते हैं। मसलनए जानवरों के क्या.क्या नाम रखे जा सकते हैं। बच्चे जो भी नाम बताएंगेएसबको सही माना जाना चाहिए। वे संज्ञा भी बता रहे हैं। लोमड़ी मांसाहारी जीव है। मांसाहारी जीव और कौन.कौन से हो सकते हैं। यह चर्चा थोड़ी सी जटिल हो सकती है। सभी बच्चे मांसाहारी.शाकाहारी जंतुओं की पहचान नहीं कर पाते। इसे विस्तार में ले जाया सकता है। बच्चे जीव विज्ञान के साथ.साथ यहां पर्यावरण पर भी अपनी समझ बढ़ाते हैं। इसी वाक्य में नामएवस्तुएस्थान आदि से संज्ञा के दर्जनों उदाहरण देकर विस्तार किया जा सकता है। जंगल शब्द पर तो असीमित चर्चा और गतिविधियां कराई जा सकती है। जंगल पर चर्चा करते हुए हम बच्चों में संज्ञाए सर्वनामए विशेषण की समझ को पुख्ता बना सकते हैं। जिराफ की चर्चा कर बच्चों को कल्पना की दुनिया की सैर कराई जा सकती है। विज्ञान और पर्यावरण से जोड़ते हुए हम जीवों की शारीरिक बनावट पर भी असीमित चर्चा करा सकते हैं। इसी एक वाक्य के इर्द.गिर्द हम बच्चो को लोमड़ीए लाली से लाल और अन्य रंगों की पहचान के चित्रों का संकलनएजंगलएजिराफएअंगूर के साथ.साथ अन्य फलों के चित्रों का संकलन और उन्हें बनाने की दिशा में बच्चों को ले जा कसते हैं। सिर्फ एक ही वाक्य के शब्दों से कई वादनों तक भाषा शिक्षण कराया जा सकता है।
मेरा मानना है कि भाषा शिक्षण को व्याकरण ग्रहण.प्रयोग और उसकी परिभाषा के बंधन से तोड़ने की जरूरत है। उच्च प्राथमिक कक्षाओं तक तो उसे व्याकरण के तकनीकी पक्ष से मुक्त ही रखना चाहिए। उच्च कक्षाओं में वो भाषा के बंधनों को आसानी से खोल लेगा। पहले बच्चों को उसके प्रयोग की खुल कर आजादी देने की जरूरत है। वह बाद में जान ही लंेगे कि वे बहुधा बातचीत में.लेखन में व्याकरण का प्रयोग ही करते आए हैं। इसी पहले वाक्य से हम बच्चों को नए वाक्य लिखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। जैसे जंगलए अंगूरए दिखाई के सहारे बच्चों को कहा जा सकता है कि वे दो.दो वाक्य बनाएं। सामूहिक रूप से भी श्यामपट्ट पर इसे विस्तार दिया जा सकता है। यही नहीं अर्थों वाले शब्द भी छांटकर लिखवाएं जा सकते हैं। जैसेए मुसकराकरए मजाक। भाषाई विस्तार के लिए बच्चों को प्रेरित किया जा सकता है कि वे जंगलए जिराफए अंगूर पर चार.छह पंक्तियां लिखिए। ;ष्ष्ष्ष्द्ध अंश में विराम चिह्न भी आएं हैंए इसकी सहायता से विराम चिह्नों की जानकारी और अभ्यास कराया जा सकता है। स्वाद और भाव पर भी व्यापक चर्चा कराई जा सकती है।
इस छोटे से अंश में रचनात्मकता के भी खूब अवसर हैं। अंगूर को फलों के साथ जोड़ते हुए अन्य बच्चों के आस.पास पाये जाने वाले फलों की सूची बनवाई जा सकती है। उन्होंने जिन वृक्षों को देखा हैए वे उनके नाम लिख सकते हैं। वे जिन जानवरों को रोजमर्रा के जीवन में देखते हैं। उनके बारे में भी लिखवाया जा सकता है। रचनात्मकता की तो कोई सीमा ही नहीं है। लाली लोमड़ी और जिराफ को आधार बनाकर संवाद शैली में बच्चों से बहुत कुछ लिखवाया जा सकता है। अभिनय करवाया जा सकता है। कक्षा को कुछ समूह में बांटकर इसी अंश को आधार मानकर नई कहानी लिखवाई जा सकती है। समूह कक्षा के स्तर से छोटे.बड़े हो सकते हैं।
हमने यहां बातचीत को जो विस्तार दिया हैए वह सिर्फ साभार लिए गए कुल बयालीस शब्द के अंश भर से हो पाया है। संभावनाएं असीमित होती हैंए बस जरा सी रचनात्मकता भर से हम कुछ भी बेहतर करने की दिशा में पहला कदम तो बढ़ा ही सकते हैं।
भाषा शिक्षण के लिए केवल व्याकरण की पुस्तक ही हो हमारे पास या पाठ्य पुस्तक के प्रश्न.अभ्यास के सहारे ही भाषा शिक्षण होए यह जरूरी नहीं। कक्षा.कक्ष में टंगे पोस्टरए चित्रादिए सूक्तियों के सहारे ही नहींए मेजएकुर्सीए श्यामपट्टए चाॅकए बस्ताए काॅपीए किताबेंए छात्र.छात्राएं ;जो कुछ भी कक्षा.कक्ष के भीतर हैद्ध आदि से हम भाषा की समझ बना सकते हैं। मैं तो यहां तक समझता हूं कि यदि कक्षा में चालीस छात्र.छात्राएं हैंए तो संभवतः उनके नाम भिन्न होंगे। माता.पिता के नाम। उनके घर.गांव.मुहल्ले आदि। इन सभी का संकलन.लेखन कराते हुए हम भाषायी दक्षताएं भी हासिल कर सकते हैं। यही नहीं बच्चे समूह में प्रोजेक्ट कार्य भी कर सकेंगे। एक कक्षा में पढ़ने वाले बच्चे एक.दूसरे के परिवार के बारे में भी जान सकेंगे। यह संभावना असीमित है कि शिक्षक क्या.क्या करा सकता है।
.मनोहर चमोली मनु