28 जुल॰ 2012

‘वो चूम ले मुझे बार बार’

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‘वो चूम ले मुझे बार बार’
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इस बरस भी बारिश खूब हुई
मैं चाहती थी तर-बतर भीगना
चिड़िया की तरह फुदकना
आँ कर के बूंदों को पीना


और बारिश में जी भर लोटना
देह से सावन का परिचय कराना
आसमान को अपने ऊपर उड़ेलना

  टप-टप पानी की लय की तरह
मैं चाहती थी गुनगुनाना


पहली पहली बूंदों की तरह उछलना
झूमती फुहारों की तरह नाचना
मैं चाहती थी हवा से प्यार करना
कि वो चूम ले मुझे बार-बार
हाँ इस बरस भी रोक लिया खुद को मैंने
अनायास, यूँ ही या जानबूझ कर?


जानती हूं कि कोई नहीं रोकता मुझे
कोई मुझे टोकता भी नहीं
खिड़कियों से झांक लो
हथेलियों से छू भर लो बस बूंदों को
खोज रही हूं कई बरसों से मैं
कि ये किस किताब में लिखा है?
अब तो पेड़ हो गई हूँ


सावन आ और जा रहे हैं
चाहती हूं अब बस ठूंठ हो जाना...।।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’
03 जुलाई 2011

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