चांद का स्वेटर
-मनोहर चमोली ‘मनु’
जाड़ा आया।
सिया मम्मी से कविता सुन रही थी। ‘चंदा मामा दूर के, पुए पकायें पूर के....’
सिया ने पूछा-‘‘मम्मी। क्या चंदामामा को जाड़ा नहीं लगता?’’।
सिया की मम्मी बोली-‘‘हाँ। लगता है। वो आसमान में अकेला जो है। उसका कोई साथी भी नहीं है।’’
सिया उदास हो जाती है। वह मम्मी की बातें सुनते-सुनते सो जाती है।
एक भेड़ आती है। वह कहती है-‘‘सिया। ये लो। मेरी ऊन। चांद के लिए स्वेटर बुन लो।’’
फिर एक मकड़ी दौड़ कर आती है। वह कहती है- ‘‘मैं जाला बुनती हूँ। मैं चांद के लिए स्वेटर बुन सकती हूँ।’’
और फिर तितली कहती है- ‘‘स्वेटर मुझे दो। मैं उड़कर चांद को स्वेटर दे आऊँगी।’’
सिया ताली बजाती है। उसका सपना टूट जाता है। वह खिड़की खोलती है। आसमान में चाँद मुस्कराता हुआ कहता है-‘‘थैंक्यू मेरी नन्ही दोस्त।’’
सिया खिड़की बंद कर देती है और हंसती हुई रजाई में घुस जाती है।
-मनोहर चमोली ‘मनु’,
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