4 मार्च 2013

तेनालीराम- ''अनमोल'', मार्च 2013. नंदन


                                            अनमोल

कथा: मनोहर चमोली ‘मनु’

एक बार की बात है। राजा कृष्णदेव राय ने दरबारियों से पूछा-‘‘क्या कोई बता सकता है कि सबसे अनमोल क्या है?’’
मंत्री ने चारों ओर नजर दौड़ाते हुए कहा-‘‘महाराज। आपके सिंहासन में जड़े मोती ही सबसे अनमोल हैं।’’ 
राजगुरु ने आंखें बंद करते हुए कहा-‘‘नहीं महाराज। आपका मुकुट ही सबसे अनमोल है। वह बेशकीमती है।’’
सेनापति ने कहा-‘‘मुझे तो लगता है कि महाराज की तलवार ही सबसे अनमोल है।’’
तेनालीराम को मौन देख राजा बोले-‘‘तेनालीराम तुम्हारी क्या राय है।’’
तेनालीराम बोला-‘‘महाराज। इस दरबार में हर वस्तु का मोल है। ये कीमती हैं, लेकिन इनकी उपयोगिता क्षणिक है।’’
पुरोहित ने कहा-‘‘महाराज। तेनालीराम दरबार की मर्यादा लांघ रहा है। इसे सिद्ध करना होगा कि दरबार की हर वस्तु क्षणिक है। तेनालीराम को बताना ही होगा कि फिर सबसे अनमोल क्या है।’’
तेनालीराम ने हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘महाराज। मुझे पर्याप्त समय दिया जाए। सबसे अनमोल क्या है। मैं साक्षात उदाहरण प्रस्तुत करना चाहूंगा।’’ राजा ने सहर्ष अनुमति दे दी।
कुछ दिनों बाद राजा वन विहार को गए। साथ में मंत्री, राजगुरु, सेनापति, तेनालीराम और पुरोहित भी साथ थे। राजा का काफिला बातों ही बातों में बहुत दूर तक निकल गया। काफिला वन में भटक गया।
रात हो गई। सुदूर एक टीले पर रोशनी दिखाई दी। काफिला रोशनी की ओर चलता गया। अंततः काफिला टीले में जा पहुंचा। घने और निर्जन जंगल में एक आश्रम को देखकर सब चकित थे। आश्रम के मुनि ने सभी का स्वागत किया। शिष्यों ने जैसे-तैसे सभी के रहने-खाने की व्यवस्था कर दी।
सुबह हुई तो राजा ने मुनि का आभार प्रकट किया। शिष्यों ने राजा के काफिले को राजमहल की ओर जाने वाले मार्ग तक पंहुचाया। राजा का काफिला सकुशल राजमहल पहुंच गया।
अगली सुबह दरबार में राजा ने कहा-‘‘यह संतोष की बात है कि वन विहार करते समय हम उस टीले में स्थित आश्रम तक पहुंच गए।’’
तेनालीराम को इसी अवसर की तलाश थी। वह उठ खड़ा हुआ। कहने लगा-‘‘महाराज। यह संतोष ही सबसे अनमोल है। आपने साक्षात देखा कि सुख-सुविधा से दूर अति निर्जन और विषम परिस्थितियों के वातावरण में मुनिवर और उनके शिष्य जीवन यापन कर रहे थे। उनके पास सबसे बड़ी पूंजी संतोष ही तो है। ज़रा सोचिए यदि वे वहां न होते तो हमारा क्या होता।’’
राजा ने कुछ क्षण विचार किया और प्रसन्न मुद्रा में बोले-‘‘तुम ठीक कहते हो तेनालीराम। सचमुच ! इस संसार में सबसे अनमोल संतोष ही है। शेष वस्तुएं प्राप्त कर मनुष्य क्षण भर की प्रसन्नता तो पा सकता है। लेकिन जिसके पास सच्चा संतोष है, वह सभी इच्छाओं से ऊपर रहकर सदैव प्रसन्न रहेगा। वाकई! तुमने अपनी बात सिद्व कर दी है।’’
सभी दरबारी भी तेनालीराम की बात से सहमत हो गए।
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-मनोहर चमोली ‘मनु’


4 टिप्‍पणियां:

  1. bahut achchhi shikshaprad kahani hai, Suhani roz aapki kahaniyan sunti hai, ek-ek kahani kai-kai baar sunati hun....pichhli kahaniyon ka quota khatm ho gaya hai, aaj ek nayi kahani padhne ko mili......vo aapki kahaniyon ki bahut badi prashansak hai!! aur mai bhi!!!!

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    1. आभार आपका। ये मेरे लिए खुषी की बात है कि सुहानी मेरी कहानियों को सुनती है। मुण्े और बल मिला है। आपका तो सदा से आभारी हूं और रहूंगा।

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  2. बहुत ही सुंदर मनोहर जी...."उनके पास सबसे बड़ी पूंजी संतोष ही तो है। ज़रा सोचिए यदि वे वहां न होते तो हमारा क्या होता।’’

    मेरी जानिब से ढेरों दाद इस छोटी से कहाँ पर.......


    साभार


    हर्ष महाजन

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।