25 मई 2013

गुल्लक रखने की परंपरा कहीं न कहीं जीवित तो है।

रिश्तेदारी में एक विवाह है। बारातियों के स्वागत-सत्कार के लिए सफेद लिफाफों में जो नये नोट देने का रिवाज है, उसके लिए नये नोटों का बमुश्किल से प्रबंध हुआ। 
 
अब समस्या हुई कि एक-एक रुपए के नोट कहां से लायें। मिले ही नहीं। सिक्कों का मिलना भी दूभर है आजकल। सब परेशान हो गए। लगभग एक-एक रुपए के छह सौ सिक्के अब आएंगे कहां से? आटो वालों से, सिटी बस वालों से भी बमुश्किल 100 सिक्के ही इकट्ठा हो पाये। 
 
अचानक मुझे सूझा कि जिन घरों में बच्चे हैं, वहां सिक्के होंगे। गुल्लक मांगे जाएं। बस फिर ढूंढ-खोज शुरू हो गई। 
 
एक घर से 150 दूसरे घर से 100 और तीसरे घर से 250 रुपये के सिक्के मिल गए। अच्छा लगा कि गुल्लक रखने की परंपरा कहीं न कहीं जीवित तो है। 
 
भले ही यह परंपरा अब धीरे-धीरे लुप्त हो रही है। आप क्या कहते हैं? 

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