10 अग॰ 2014

'पुनाड़ से रूद्रप्रयाग’ जनपद रूद्रप्रयाग से संबंधित जानकारियों का दस्तावेज

'पुनाड़ से रूद्रप्रयाग’ जनपद रूद्रप्रयाग से संबंधित जानकारियों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज

पुनाड़ से रूद्रप्रयाग’ डाक से मिली।

किताब के लेखक राकेश मोहन कण्डारी की यह पहली कृति है। शिक्षक कण्डारी जी शोधार्थी हैं। बालसाहित्य में भी सक्रिय हैं। देश की मशहूर पत्रिकाओं में समसामयिक लेख लिखते रहते हैं। साहित्यिक आयोजनों में निरन्तर मौजूद रहते हैं। साहित्य के जागरुक छात्र भी हैं और पाठक भी।

किताब का नाम पढ़कर लगा कि यात्रा संस्मरण हैं। नाम ‘पुनाड़ से रूद्रप्रयाग’ ऐसा ही आभास हुआ। सामग्री पर नज़र पड़ी और पन्ने उलटे तो किताब उत्तराखण्ड के जनपद रूद्रप्रयाग पर आधारित है। काफी बरस पहले सूबे के सूचना विभाग ने जनपदों पर सन्दर्भग्रन्थ प्रकाशित किए थे। ’पुनाड़ से रूद्रप्रयाग’  जनपद रूद्रप्रयाग से संबंधित जानकारियों के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज बन पड़ा है। इसके अलावा यह रूद्रप्रयाग के छात्रों के लिए भी बेहद उपयोगी पुस्तक साबित होगी।

मेरी तरह अधिकतर पाठक भी नहीं जानते होंगे कि रूद्रप्रयाग का प्राचीन नाम पुनाड़ है। जनपद से संबंधित आंकड़े जो बेहद जरूरी हैं, वह इस किताब में संकलित हैं। जनपन का ऐतिहासिक एवं भौगोलिक परिचय विस्तार से दिया गया है। यहां की शिक्षा की स्थिति, स्वास्थ्य की स्थिति का वर्णन विस्तार से दिया गया है।

एक अध्याय इस जनपद की सांस्कृतिक धरोहर और परिधियों पर आधारित है। यहां के मेले और उत्सव पर आधारित अध्याय अधिक पठनीय बन पड़ा है। यह पर्यटकों और घुमक्कड़ों के लिए भी जरूरी किताब बन गई है।

किताब में जनपद की विभूतियों में कवि चन्द्रकुंवर बत्र्वाल और संत स्वामी सचिदानन्द का उल्लेख किया गया है। दोनों का परिचय मात्र दो ही पेज में समेट लिया गया है। केदारनाथ जल प्रलय को भी स्थान दिया गया है लेकिन मुझे लगता है कि लेखक इसे और विस्तार दे सकते थे। अंत में जिले के प्रमुख नगरों का उल्लेख भी तीन से दस पंक्तियों की बजाए विस्तार से हो सकता था। उन नगरों में दर्शनीय स्थल का उल्लेख हो सकता था।

कुल मिलाकर इस किताब को और संग्रहणीय,पठनीय बनाया जा सकता था। 112 पेज की यह किताब हार्ड बाउंड में आती तो लम्बे समय तक सुरक्षित हो जाती। प्रूफ में और सावधानी बरतने की आवश्यकता थी। राज्य का नक्शा और रूद्रप्रयाग का नक्शा और स्पष्ट होता तो किताब की महत्ता और बढ़ जाती। आवरण समूचे रूद्रप्रयाग का प्रतिनिधित्व करता हुआ होता तो बेहतर होता। मूल्य 195 अधिक लग रहा है।

यह पुस्तक अन्य संबंधित अब तक प्रकाशित पुस्तकों से कैसे अलग और खास हो कि हर कोई इसे खरीदना पसंद करे। सूबे से बाहर के पाठक भी इस किताब को खोजे,तलाशें और पढ़े, इसके लिए आगामी संस्करणों  में कुछ अध्याय जोड़े जाएंगे, ऐसी आशा है।

किताब में प्रमुख तीर्थ एवं पर्यटन स्थलों की विस्तार से जानकारी अब भी शेष है। मसलन अरखुण्ड में पीठासणी देवी का प्राचीन मन्दिर है। मात्र जानकारी दी गई है। यह अरखुण्ड कहां है? पीठासणी देवी की क्या मान्यता है? यहां तक पहुंचने के लिए कहां से कहां तक जाना होगा। रुकने-ठहरने का अंतिम पड़ाव कहां है? ऐसे कई स्थलों का आधा-अधूरा छोड़ दिया गया है। फिर भी यह किताब जनपद रूद्रप्रयाग को और करीब से जानने का मौका देती है। जिज्ञास जगाती है।

लेखक ने एटकिंसन का गजेटियर का अध्ययन किया है। गढ़वाल गजेटियर का भी। तब क्यों कर उन्होंने इसे और रेखांकित किया जाने वाला नहीं बनाया?
सामग्री के संकलन में मेहनत की गई है। इसमें कोई संशय नहीं है। प्रकाशन में प्रकाशक से और मेहनत की अपेक्षा साफ झलकती है।
किताब के बारे में लेखक से इस लिंक पर सम्पर्क किया जा सकता है।
Rakeshmohan Kandari

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