9 नव॰ 2015

दीवाली की अगली सुबह नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

दीवाली की अगली सुबह

-मनोहर चमोली ‘मनु’


दीवाली से एक दिन पहले की सुबह थी। हर कोई बड़ा उत्साहित था, लेकिन मोहित, हरजीत और इरफान की आंखों में विशेष चमक थी। वह जहां भी जा रहे थे, एक साथ जा रहे थे। आंखों ही आंखों में झांकते और मुस्कराने लग जाते। जाॅन किनसुर ने पूछ भी लिया था-‘‘मैं कई दिनों से देख रहा हूं। तुम तीनों की एक्टीविटी अलग सी हो गई हैं। क्या कुछ चल रहा है तुम्हारे दिमाग में? हमसे भी शेयर करो यार।’’ कुलबिन्दर ने कहा-‘‘ये हमेशा से ऐसे ही हैं। जब भी कोई त्योहार आता है, ये अलग टोली बना लेते हैं। दीवाली आ रही है, इनके दिमाग में कुछ हट कर चल रहा होगा। रहने दो। दीवाली के दिन पता चल ही जाएगा।’’ बात आई गई हो गई।
आज दीवाली है। कुलबिन्दर के साथ जाॅन किनसुर सुबह से ही इन तीनों की निगरानी कर रहे थे। वे इन दोनों को देखते और सिवाय मुस्कराने के कुछ बोल ही नहीं रहे थे। काॅलोनी बहुत बड़ी थी। काॅलोनी की टाइप बिल्डिंगस में मोहित, हरजीत और इरफान चक्कर लगा रहे थे। आंखों ही आंखों में झांकते और मुस्कराने लग जाते। शाम होते-होते तीनों ने काॅलोनी के दो चक्कर लगा लिये थे। अंधेरा होने से पहले वह काॅलोनी के पार्क में बैठे हुए थे।
मोहित ने पूछा-‘‘हरजीत। डंडों का इंतजाम हो गया?’’ हरजीत ने हां में सिर हिलाया। इरफान ने पूछा-‘‘अरे हां। टार्च का?’’ हरजीत बोला-‘‘डोंट वरी। तुसी ये मेरे पे छोड़ दो। दादी के पास जो मोबाइल है, उसकी टार्च पावरफुल है। ये देखो। कल तक मोबाइल मेरे पास ही रहेगा। और दसो।’’ मोहित ने धीरे से कहा-‘‘एक बैग भी तो चाहिए था?’’ इरफान ने कहा-‘‘है मेरे पास।’’
हरजीत बोला-‘‘आज ज्यादा जागने की जुरूरत नहीं है। मस्ती करो और जल्दी सो जाओ। सुबह अंधेरे में उठने के लिए एलार्म लगा लेना। अपने-अपने घर से निकल कर यहीं पार्क में मिलना है। ठीक पांच बजे।’’
इरफान बोला-‘‘पांच नहीं, यार चार बजे करो। पूरी काॅलोनी कवर करनी है। इससे पहले कोई जाग जाए, हमें अपना काम खत्म कर लेना है। किसी ने देख लिया तो।’’ मोहित बोला-‘‘ठीक कहते हो। हमें एक जगह से दूसरी जगह भी तो जाना होगा। इस पार्क को देख रहे हो। बहुत बड़ा है। यहां भी हमें बहुत समय लग जाएगा। वैसे हर जगह स्ट्रीट लाईट्स हैं। हमें ज्यादा दिक्कत नहीं होगी।’’
हरजीत बोला-‘‘सब हो जाएगा। बस दो बंदों से संभलकर रहना होगा। सोनू और साजिद से। उनकी नज़र भी मिस पटाखों पर रहती है। वे भी हर साल सुबह-सवेरे पटाखें खोजने आते हैं। पिछली दिवाली में तो उन दोनों ने मेरे उठाए पटाखे छीन लिए थे। वे दो थे और मैं अकेला। इस बार तो हम तीन है। डंडे हमारे पास रहंेगे ही। मैं तो धुनाई कर दूंगा।’’ मोहित बोला-‘‘ओए रहने दे। हमें किसी से लड़ाई नहीं करनी है। हमें तो आज मिस हुए पटाखे उठाने हैं और चल देना है।’’
हरजीत बोला-‘‘ओके। यार। कल सुबह चार बजे। हैप्पी दीवाली।’’ सब अपने-अपने घर की ओर चल पड़े। दीवाली का धूम-धड़ाका देर रात तक चलता रहा। हरजीत, मोहित और इरफान पटाखों की आवाजें़ सुनते और मन ही मन मुस्कराते। उन्हें पता था कि रात के अंधेरे में कई बार पटाखों को जलाते समय उनकी बाती पर आग नहीं लग पाती और वह बिना जले ही छूट जाते हैं। यही मिस बम-पटाखे तो उन्होंने सुबह उठाने का प्लाॅन किया था। वह भी सबसे पहले। काॅलोनी में तो कई होंगे, जो सुबह-सुबह उठकर मिस पटाखें उठाने के लिए काॅलोनी का चक्कर लगाएंगे। लेकिन वे तो चार बजें उठने वाले हैं वह भी एक साथ। 
भोर हुई। वे तीनों पंहुच गए। इरफान बोला-‘‘किसी को कोई दिक्कत तो नहीं हुई? सबके पास डंडे हैं न? मैं ये दो और ले आया। काॅलोनी में कुत्ते बहुत हैं।’’ हरजीत और मोहित चुप रहे। हरजीत बोला-पार्क के बम बाद में उठाएंगे। पहले टाईप वन में चलो। फिर टाईप टू में जाएंगे और फिर टाइप थर्ड में। समय बचा तो तब टाइप फोर में जाएंगे नहीं तो पार्क में आ जाएंगे।’’ मोहत बोला-‘‘यही ठीक रहेगा।’’
अभी वह टाईप वन के आस-पास के मिस पटाखे खोज-खोज कर बैग में भर रहे थे कि हरजीत बोला-‘‘ओ तेरे की। यह बैग तो भर गया। अब क्या करें?’’ इरफान बोला-‘‘चलो कोई बात नहीं। अपनी ज़ेबें भी भर लेते हैं। चलो जल्दी करो।’’ थोड़ी देर बाद मोहित बोला-‘‘मेरे तो सारे जे़ब भर गए। पटाखें हैं कि मिलते ही जा रहे हैं। अब क्या करूं?’’ यही हाल हरजीत का और इरफान का था। इरफान बोला-‘‘हमें अलग-अलग बैग लाने चाहिए थे।’’ हरजीत बोला-‘‘अब किसी को क्या पता था कि लोगों को पटाखें छुड़ाने भी नहीं आते। यह बैग क्या कम बड़ा है? हम सभी के जेबों में भी पटाखें हैं।’’ मोहित बोला-‘‘ज़रा सोचो। पूरी काॅलोनी में मिस पटाखे कितने होंगे? हम बेकार में अंधेरे में आए। हमसे अच्छे तो वे हैं जो आराम से सोकर जागेंगे और आराम से काॅलोनी का चक्कर लगाएंगे।’’
इरफान बोला-‘‘मैं ऐसा करता हूं। घर लौट जाता हूं। घर के स्टोर में एक बैग रखा है। वह इससे भी बड़ा है। ले आता हूं।’’ मोहित बोला-‘‘ठीक है। हम तीनों चलते हैं। कुत्तों का डर हो सकता है।’’ तीनों इरफान के घर की ओर चल पड़ते हैं। बैग लेकर वह टाईप वन में वापिस लौट आते हैं। कुछ ही देर में वह बैग भी भर ज9ाता है। हरजीत खुश होते हुए बोला-‘‘वाह ! मजा आ गया। हमारा तो यह बैग भी भर गया। इतने पटाखे जमा हो गए है कि हम एक महीने की दीवाली मना सकते हैं। क्यों?’’ इरफान बोला-‘‘देखो यार, हमें एक भी कुत्ता नहीं मिला। चलो वापिस अपने घर चलते हैं। सुबह होते ही फिर पार्क में मिलते हैं।’’
सुबह हुई। तीनों पार्क में आ पहुंचे। पार्क का नज़ारा देखते ही वह हैरान थे। सूरज आसमान में था। लेकिन रात हुई पटाखेबाजी के कारण वह धुंधला दिखाई दे रहा था। 
इरफान बोला-‘‘मोहित। कुछ समझ में आया?’’
मोहित ने कहा-‘‘हां यार। काॅलोनी वालों ने पार्क का सत्यानाश कर दिया। मुझे याद है हमने जून में इस पार्क के किनारे पेड़ लगाए थे। देख रहा हूं कि कल दीवाली के धूम धड़ाकों में वे सारे मुरझा गए हैं।’’ तभी कुलबिन्दर और जाॅन किनसुर भी आ गए। हरजीत बोला-‘‘ये भी पटाखे उठाने आए हैं। अपना प्लान मत बताना।’’ कुलबिन्दर बोल पड़ी-‘‘हम भी तुम्हारे पीछे-पीछे थे। हमसे क्या अपना प्लाॅन छिपाओगे। तुम दो बैग्स भर कर ले गए। हमारे पास तीन बैग्स भरे हुए हैं।’’
जाॅन किनसुर ने कहा-‘‘एक बात तो तय है कि यदि हमारी काॅलोनी का यह हाल है तो इसका मतलब यह है कि पूरे देश में करोड़ों पटाखे मिस हुए होंगे।’’ हरजीत बोला-‘‘जरा सोचो। ये करोड़ों के पटाखों में कितना रुपया खर्च किया गया होगा?’’ मोहित ने कहा-‘‘हां यार। सूरज को देख रहे हो। नौ बजने वाले हैं और ऐसा लग रहा है कि सूरज आज पूरब से आया ही नहीं होगा।’’ जाॅन किनसुर ने कहा-‘‘एक बात नोटिस की तुम सबने? इस काॅलोनी के कुत्ते कहां गए। कल से सब गायब हैं। पटाखों के शोर से उनके कानों का क्या हुआ होगा?’’
इरफान ने कहा-‘‘काॅलोनी के मिस पटाखों के अलावा पटाखों का कचरा देख रहे हो। ये सब क्या है यार। अब देखो। हमने जो पटाखे इकट्ठा किये हैं, उनका क्या करें?’’ मोहित ने कहा-‘‘ये हालत देखकर मुझे नहीं लगता कि हम उन्हें जलाएं।’’ इरफान बोला-‘‘हमारे जलाने न जलाने से क्या होता है। पब्लिक तो जला ही रही है। कान फोड़ू धमाके किसने नहीं सुने कल। पूरी रात शोर ही शोर था।’’
कुलबिन्दर बोली-‘‘हम भी तो पब्लिक का हिस्सा हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि हम सब ठान लें कि पटाखों की दीवाली नहीं खेलेंगे। दीप जलाएंगे। केंडल जलाएंगे। घर की साफ-सफाई करेंगे। क्या हम इतना भी नहीं कर सकते?’’
इरफान बोला-‘‘यार ये आइडिया बुरा नहीं। लेकिन हमने आज सुबह जो पटाखे इकट्ठा किये हैं उनका क्या करें?’’ जाॅन किनसुर बीच में ही बोल पड़ा-‘‘चर्च के फादर कहते हैं। जो चीजें आपकी काम की न हो, वो किसी ओर के काम की हो सकती हैं। ऐसा नहीं हो सकता कि अगली दीवाली में हम पूरी काॅलोनी वालों को कन्वेंस करें कि जो इस बार के बचे पटाखें हैं,उन्हीं से दीवाली मनाएं। नए पटाखे न खरीदें।’’ कुलबिन्दर ने कहा-‘‘आइडिया बुरा नहीं। हम दो थे। तुम तीन हो। अब हम पांच हो गए हैं। हो सकता है हमारे इस प्लान में कुछ फरेन्डस और जुड़ जाएं। मिलाओ हाथ।’’
तब तक सोनू और साजिद आ गए। सोनू बोला-‘‘हम भी तुम्हारे साथ हैं। यार वाकई। ये पटाखे तो बहुत बुरे हैं। हमारा कुत्ता तो कल से गायब है।’’ साजिद ने कहा-‘‘हमारे घर के दोनों तोत पटाखों के धूल-धड़ाकों से बेसुध पड़े हैं। शायद ही बचेंगे।’’
सबने एक-दूसरे से हाथ मिलाया और अपने घर की ओर चल पड़े। 
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मनोहर चमोली ‘मनु’,भितांई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड। मोबाइल-09412158688

नन्हे सम्राट दिसंबर 2015 प्रदूषण रहित नई दीवाली


प्रदूषण रहित नई दीवाली  


मनोहर चमोली ‘मनु’

हर बार की तरह मोतीवन में दीवाली को हर्ष और उल्लास से मनाये जाने की तैयारी शुरू हो गई थी। इसके लिए पीपल के पेड़ के नीचे बैठक बुलाई गई। शेर की तबियत खराब थी। बैठक की अध्यक्षता हाथी कर रहा था। 
हाथी ने चिंघाड़ते हुए कहा-‘‘यह हमारी नाक का सवाल है। मोतीवन हमेशा देर रात तक पटाखे जलाता है। आस-पास के जंगलवासी हमारी दीवाली देखने के लिए आते हैं। हर कोई धूम-धड़ाके से दीवाली मनाएगा।’’
चूहा उठ खड़ा हुआ। बोला-‘‘ये इक्कसवीं सदी है। दीवाली को नये तरीके से मनाने का वक्त आ गया है। क्या जरूरी है कि हम सैकड़ों पटाखे जलाकर ही अपना दम-खम दिखायें। क्या सादगी से दीवाली नहीं मनाई जा सकती? मैं न तो एक पटाखा खरीदूंगा और न ही अपने आस-पास किसी को भी धूम-धड़ाका करने दूंगा।’’ 
यह कहकर चूहा चला गया। बैठक बिना नतीजे के समाप्त हो गई। लोमड़ और सियार दौड़कर शेर की मांद पर जा पहुंचे। उन्होंने बढ़ा-चढ़ाकर बैठक का सारा किस्सा शेर को सुनाया। 
बीमार शेर कराहते हुए चिल्लाया-‘‘’मोतीवन में मेरे आदेश के बिना पत्ता भी नहीं हिलना चाहिए। फिर भला किस की हिम्मत हुई जिसने यह कहलवा दिया कि दीवाली में धूमधड़ाका नहीं होगा। बताओ।’’ राजा शेर सिंह ने दहाड़ते हुए पूछा।
लोमड बोला-‘‘ अभी सारा किस्सा सुनाया तो आपको। ये सब चूहे  का किया-धरा है। वह घर-घर जाकर अफवाह फैला रहा है कि यदि हम दीवाली इसी तरह मनाते रहे तो यह धरती खत्म हो जाएगी। यदि हम बम-पटाखे जलाते रहे तो एक दिन हम सब मर जाएंगे। आप भी।’’
शेर दहाड़ा। उसने आदेश देते हुए कहा-‘‘ ये बात है। ऐसा करो उस चूहे को जिन्दा मेरे सामने पेश किया जाए। अभी के अभी। मैं भी तो सुनूं कि वह पागल क्यों हो गया है। वह कहता क्या है?’’
चूहे ने बैठक में लोमड और रंगी सियार की हंसी उड़ाई थी। कुछ जानवर तो चूहे की बात का समर्थन भी करने लगे थे। लोमड़ और सियार को इसी अवसर की तलाश थी। वह दौड़कर चूहे  को पकड़ कर ले आए। चूहा भी निडर होकर शेर से मिलने चला आया।
रंगी सियार ने शेर से कहा-‘‘ये लीजिए महाराज। यह है आपका गुनहगार। हम सभी का गुनहगार। इसी ने मोतीवन में घूम-घूम कर कहा है कि हमें बम-पटाखे नहीं जलाने चाहिए। यह कहता है कि मोमबत्ती जलाओ। दीये जलाओ। अंधकार को भगाओ। बस। ’’
शेर चूहे को घूरते हुए दहाड़ा-‘‘हम्म। तो तुम हो। पिद्दी भर के चूहे। अरे मूर्ख। दीवाली क्या रोज-रोज आती है? दीवाली साल में एक ही बार तो आती है। मोतीवन में धूम-धड़ाका नहीं होगा तो आसपास के जंगलवासी क्या कहेंगे। क्या हम इतने कंगाल हो गए हैं? तेरे पास बम-पटाखे नहीं हैं, तो क्या हुआ। डरपोक मुझसे ले जाना। ’’
 चूहे ने विनम्रता से जवाब दिया-‘‘ तभी तो कह रहा हूं एक दिन में ही हम अपने मोतीवन का कबाड़ा कर देते हैं। दीवाली सादगी से मनाएंगे तो हमारा मोतीवन और भी खुशहाल हो जाएगा। दूसरी बात यदि महाराज। दीपावली में बम-पटाखे जलाते रहे तो एक दिन ऐसा आएगा कि आप भूखे ही रह जाओगे।’’
शेर उठ खड़ा हुआ। वह चैंकते हुए बोला-‘‘मैं भूखा रह जाऊंगा? कैसे? ये तू क्या अनाप-शनाप बक रहा है। तेरा दिमाग तो नहीं चल गया?’’
चूहे ने कहा-‘‘दीपावली में बम पटाखे जलाने से ध्वनि प्रदूषण होता है। कई छोटे-बड़े जीव-जन्तु तो डर के मारे कई दिनों तक भूखे-प्यासे ही रह जाते हैं। सैकड़ो हैं जिनकी आंखों की रोशनी मंद पड़ जाती है। सैकड़ों के कान हमेशा के लिए बहरे हो जाते हैं। दहशत से कई तो मर भी जाते हैं। आपने देखा कई जानवर तो कई दिनों तक गायब से ही हो जाते हैं।’’
शेर दहाड़ा-‘‘उससे मुझे क्या? कोई दीवाली मनाये न मनाये। डरे न डरे। मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। बस पहले तुम तो यह बताओ कि मैं भूखा भला क्यो रह जाऊंगा? दीपावली पर पटाखों के जलाने से मेरी भूख का क्या संबंध है?’’
 चूहे ने कहा-‘‘वही तो बता रहा हूं। आप तो जानते ही हैं कि प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। मोतीवन के दोनों तालाब का पानी लगातार घट रहा है। इस बार तो बारिश भी नहीं हुई। बम पटाखों से निकलने वाली गैसें और प्रदूषण से उत्सर्जित कार्बन ने ओजोन परत में सुराख कर दिया है। ये सुराख बढ़ता ही जा रहा है। गरमी बढ़ रही है। सर्दियों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। गर्मियों में गर्मी बढ़ रही है। क्या आप नहीं जानते? जानते हैं न?’’
रंगी सियार बीच में ही बोल पड़ा-‘‘महाराज। ये  चूहा बहुत चालाक है। अब ये आपको कहानी सुनाने लगा है। इसने बैठक में भी कई जानवरों को बहला-फुसला दिया है। इसकी बात मत सुनो। ये कहां की कहां लगा रहा है।’’
लोमड भी रंगी सियार की हां में हां मिलाते हुए कहने लगा-‘‘लगता है यह अपनी जान बचाने का कोई तरीका खोज रहा है। किस्सा-कहानी सुनाने से आपकी भूख का क्या मतलब है?’’
शेर सिंह ने चूहे से कहा-‘‘रुको तो। ये नई-नई बात बता रहा है। अच्छा चूहे ये तो बता कि ये ओजोन परत क्या है? उससे हमारा क्या लेना-देना? तू बात तो दिलचस्प कह रहा है।’’
 चूहे ने बताया-‘‘बताता हूं। हमारे आसमान में एक छतरीनुमा विशालकाय परत है। जिस प्रकार छतरी धूप-बारिश से बचाती है उसी प्रकार ये ओजोन परत सूरज की तीव्र और नुकसान पहुंचाने वाली किरणों को धरती पर आने से रोकती है। लेकिन इस ओजोन परत पर सुराख हो गया है। यह सुराख बढ़ता ही जा रहा है। अब यदि हम सुराख वाली छतरी लेकर घूमेंगे तो बारिश में भीग जाएंगे। इसी प्रकार अब सूरज की तीव्र किरणें उस सुराख से सीधे धरती तक आ रही है। इस कारण धरती पर असाधारण बदलाव दिखाई देने लगे हैं। जिनकी बात मैंने पहले भी की थी।’’
शेर ने पूछा-‘‘बदलाव ! कौन से बदलाव की बात कर रहा है तू?’’
 चूहे ने बताया-‘‘जैसे अधिक गर्मी का होना। अधिक बारिश का होना। सूखा पड़ना या कहीं बाढ़ आना। बेमौसम में बारिश का होना। कहीं बहुत बारिश होना तो कहीं एक बूंद का न गिरना। ’’
शेर ने पूछा-‘‘ओह ! लेकिन यार ये तो बता कि बमपटाखों से ओजोन परत का क्या संबंध है?’’
च्ूहा बोला-‘‘संबंध है तभी तो कह रहा हूं कि बम-पटाखें हम सब के लि खतरनाक हें। बम-पटाखों को जलाते समय इनसे मैग्नेशियम कार्बन मोनो अक्साइड, कापर मैग्नेशियम सल्फर नाइट्रोजन भारी मात्रा में निकलती है। इन गैसों की मात्रा वायुमंडल में बढ़ जाती है। प्रदूषण बढ़ता है और ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है।’’
शेर बोला-‘‘हुं। ये बात है। मैं समझ गया। लेकिन मेरे भूखे रह जाने का क्या मतलब है? ये तो बता। ’’
 चूहे ने कहा-‘‘जी बताता हूं। यदि ओजोन परत का सुराख बढ़ता ही जाएगा तो सूरज की किरणे सीधे हम तक बहुत तेजी से पहुंचने लगेंगी। वे किरणें बेहद हानिकारक होती हैं। धरती गर्म से और गर्म हो जाएगी। होती जाएगी। होती जाएगी। हमारा जीना मुहाल हो जाएगा। घास हरे-भरे वृक्ष झुलस कर सूख जाएंगे। बारिश नहीं होगी। शाकाहारी जीव बिना घास-पात के मर जाएंगे। जब शाकाहारी जीव ही नहीं रहेंगे तो आप मांसाहारी भोजन कैसे कर पाएंगे? क्या आप घास खाएंगे। घास भी कहां से खाओगे? जब बारिश ही नहीं होगी तो घास कहां उगेगी। तालाब सूख जाएंगे तो बिना पानी के कितने दिन रहोगे?’’
शेर सिंह गुर्राया-‘‘ ये बात है।  चूहे जी तुम सही कहते हो। आज से तुम मोतीवन के ही नहीं, मेरे भी सलाहकार बनाए जाते हो। आज से तुम मेरे आस-पास ही रहोगे।’’
लोमड बीच में ही बोल पड़ा-‘‘मगर महाराज। आपका सलाहकार तो मैं हूं। मैं आपको हर बार नई से नई सूचना देता रहता हूं। मेरा क्या होगा?’’
शेर सिंह दहाड़ा-‘‘चुप रहो। तुम और रंगी सियार अभी जाओ। समूचे मोतीवन में एक-एक जीव को, एक-एक जंतु को बता दो कि इस बार से दीपावली सादगी से मनाई जाएगी। यही नहीं दीपावली के अवसर पर हम मोतीवन में विशाल वृक्षारोपण के लिए गड्ढे खुदवाएंगे। पौधशाला का निर्माण कराएंगे। बरसात आते ही विशाल वृक्षारोपण किया जाएगा। जाओ। सुनो। बम-पटाखों को जलाने वालों के लिए कड़ी से कड़ी सजा देने का फैसला भी किया जाता है। इसे भी सुना दो।’’
लोमड और रंगी सियार दुम दबाकर मोतीवन की ओर दौड़ पड़े। वहीं दरबारी नये सलाहकार के स्वागत में चूहे के लिए तालियां बजा रहे थे। पीपल के पेड़ के नीचे एक बैठक फिर से बुलाई जाने वाली थी। इस बैठक में नई दीवाली को मनाने की कार्ययोजना बनाने की तैयारी भी शुरू हो गई थी। 
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मनोहर चमोली ‘मनु’,भितांई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड।
 मोबाइल-09412158688


दीपावली पर विशेष अब अबसेंट नहीं नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

दीपावली पर विशेष: अब अबसेंट नहीं


-मनोहर चमोली ‘मनु’

 दीपावली नजदीक आती तो आर्यन उदास हो जाता। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वह दीपावली के बाद तीन-चार दिन स्कूल ही नहीं आता।
नई क्लास टीचर रेहाना ने स्टाॅफ रूम में आर्यन को बुलाया। स्टाॅफ रूम में बुलाना स्टूडेन्टस में सनसनी फैला देता था। आर्यन और मायूस हो गया। वह धीरे-धीरे स्टाॅफ रूम की ओर बढ़ने लगा। उसे पता नहीं था कि खिड़की से टीचर रेहाना ने उसे देख लिया था। उम्मीद से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब आर्यन स्टाॅफ रूम के अंदर नहीं पहुंचा तो रेहाना टीचर खुद ही बाहर आ गई। आर्यन दरवाजे की ठीक बाहर खड़ा था।
रेहाना ने चैंकते हुए कहा-‘‘बाहर कब से खड़े हो? अन्दर क्यों नहीं आए?’’ आर्यन की आंखें जमीन पर गड़ी रही। रेहाना ने हौले से आर्यन का बांया कांधा छूआ और उसे अंदर ले गई। आर्यन का उदास चेहरा देख, रेहाना ने प्यार से कहना शुरू किया-‘‘आर्यन। आप अच्छे स्टूडेंट हो। मैं इस स्कूल में नई आई हूं। अब मैं स्टाॅफ रूम में उन स्टूडेन्टस को ही बुलाया करूंगी, जो मुझे अच्छे लगते हैं।’’
अभी तक आर्यन जमीन को घूर रहा था। रेहाना की बात सुनकर वह चैंक पड़ा। वह धीरे से बोला-‘‘आप तो नई हो। आपको कैसे पता कि कौन स्टूडेंट अच्छा है?’’
रेहाना को हंसी आ गई। अपनी हंसी को छिपाते हुए वह बोली-‘‘मैं नर्सरी से लेकर अब तक के अटेंडेंस रजिस्टर देख रही थी। आप रेगुलर स्टूडेंट हो। आपकी अटेंडेंस सबसे अच्छी है। लेकिन हर साल दीपावली के आस-पास तुम अबसेंट रहते हो? क्या बात है?’’
आर्यन रेहाना के मुंह पर देखता ही रह गया। वह हैरान था। अब तक किसी ने इस बात पर कहां ध्यान दिया था कि वह दीपावली के आस-पास क्यों अबसेंट रहता है?
‘‘बोलो। आर्यन,क्या बात है? तुम चुप क्यों हो?’’ रेहाना ने पूछा।
आर्यन चुप रहा। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गई। वह पलक झपकाना तक भूल गया। रेहाना समझ गई कि यदि वह जोर देगी तो आर्यन की भीग आईं आंखों से आंसू टपकने लगेंगे।
रेहाना ने बात बदल दी। कहने लगी-‘‘कोई बात नहीं। तुम नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं। बस मैं तुम्हारी अटेंडडेंस से खुश हूं। मैं तुम्हारे लिए एक पेंसिल, एक इरेज़र और एक कटर लाईं हूं। ये लो। इस साल भी तुम्हारी अटेंडेंस बेस्ट होगी तो मैं अच्छा सा गिफ्ट दूंगी। और हां। कुछ भी हो। यदि इस बार दीपावली में तुम अबसेंट नही रहोगे तो मुझे अच्छा लगेगा। अब जाओ।’’
आर्यन दौड़कर अपनी क्लास में जाकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में पूरी क्लास को पता चल गया कि रेहाना टीचर ने आर्यन को गिफ्ट में पेंसिल,कटर और इरेजर दिया है। क्यों दिया है? यह किसी को नहीं पता था। 
दीवाली नजदीक थी। आर्यन की उदासी थी कि हर बार की तरह बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन पहली बार किसी ने उसके साथ अपनापन दिखाया था। वह अक्सर रेहाना के बारे में सोचता। उसका मन हर बार एक ही बात कहता-‘‘इतने सालों से किसी ने कहां पूछा था कि वह दीपावली के अवसर पर स्कूल आना बंद क्यों कर देता है। कुछ भी हो। इस बार में एक भी दिन अबसेंट नहीं रहूंगा।’’
यही हुआ। वह रोज़ स्कूल आता रहा। कल से दीपावली की छुट्टियां हो रही थीं। रेहाना टीचर ने क्लास में आईं। कहने लगी-‘‘लिसन टू मी। हैप्पी दीपावली। बट केयरफुल। पटाखे पेरेंटस की परसेंस में ही छुड़ाना। ओके? और हां चार दिन की छुट्टियां हैं। इन्ज्वाय यूअरसेल्फ।’’
‘‘यस मैम।’’ आर्यन को छोड़कर सभी स्टूडेंटस जोर से चिल्लाते हुए बोले। रेहाना टीचर ने देखा कि आर्यन सिर झुकाकर उदास बैठा था। रेहाना टीचर अटेंडेंस रजिस्टर लेकर क्लास से बाहर चली आई। 
चार दिनों की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला। जिसे देखो वह दीवाली की ही बात कर रहा था। सभी स्टूडेंटस बढ़ा-चढ़ाकर दीवाली में पटाखे छोड़ने की बात कर रहे थे। प्रातःकालीन सभा के बाद जैसे ही क्लास में अटेंडेंस हुई तो रेहाना टीचर ने आर्यन की ओर मुस्कराते हुए देखा। आर्यन का चेहरा फिर भी उदास था। अटेंडेंस हुई। रेहाना टीचर ने कहा-‘‘तो बच्चों। दीपावली को खूब इन्ज्वाय किया होगा। है न?’’
दीपाली खड़ी हुई-‘‘मैम। इस बार तो मैंने बम भी फोड़ा। बड़ा मज़ा आया।’’
रुखसार बोली-‘‘मैम। मेरे अब्बू ने पूरा राकेट बाॅक्स मुझे दे दिया। कुलविन्दर के साथ हमने बोटल में रखकर राकेट आसमान में छोड़े। बड़ा मजा आया।’’
रैहट स्टीक ने बताया-‘‘मैंम। हम सब पहले चर्च गए। उसके बाद फादर ने हम सभी को एक-एक पैकेट अनार बम का भी दिया। वैरी फनी।’’
मोहित ने बताया-‘‘मैम। हरजिन्दर और अनीस मेरे घर पर पटाखे फोड़ने आए थे। मम्मी ने हमारे लिए कई स्वीट डिश बनाई थी। हमने खूब इंज्वाय किया।’’
एक के बाद एक स्टूडेंटस दीपावली के बारे में बता रहे थे। अचानक रेहाना टीचर ने पूछा-‘‘अरे। आर्यन। तुम भी तो बताओ। तुम्हारी दीवाली कैसी रही?’’
कंवलजीत बीच में ही बोल पड़ा-‘‘ये क्या बताएगा मैम। मैं बताता हूं। आर्यन दीपावली नहीं खेलता। ये बम-पटाखों से दूर ही रहता है।’’ यह सुनकर आर्यन की आंखें भर आई। ऐसा लग रहा था कि बस अभी वह रो पड़ेगा।
तभी रेहाना टीचर ने पूछा-‘‘सोनाली। तुम बताओ। तुम्हारी दीवाली कैसी रही?’’
सारिया ने जवाब दिया-‘‘मैम। दीवाली के दिन ही सोनाली के घर में पटाखों से आग लग गई थी। इसके पापा की डैथ हो गई थी। तब से सोनाली के घर में दीवाली नहीं मनाई जाती।’’
रेहाना टीचर ने कहा-‘‘ओह! साॅरी सोनाली। मुझे पता नहीं था। बाई दि वे। हम सभी को त्योहार केयरफुली मनाने चाहिए। ओके। अभी मैं चलती हूं। मौका मिला तो मैं इंटरवल के बाद आप सभी से बात करने आऊंगी।’’ यह कहकर रेहाना टीचर चली गई। दूसरे ही क्षण मैथ्स पढ़ाने के लिए सक्सेना टीचर आ गए थे। 
इंटरवल हुआ तो आर्यन की उदासी कुछ कम हो गई। वह सुबह से ही गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था। वह बार-बार सोनाली की ओर देख रहा था। सोनाली मैथ्स के टीचर सक्सेना जी के पढ़ाने से पहले ही अपने चेहरे की उदासी दूर कर चुकी थी।
सोनाली को अपनी ओर आता देख वह चैंक पड़ा। साथ में सारिया भी थी। सोनाली ने कहा-‘‘आर्यन। हम सभी हैरान है कि तुम पहली बार दीवाली की छुट्टियों के बाद सीधे स्कूल आ गए। जस्ट इमेजिन। क्या तुम दीवाली मनाने कहीं दूर जाते हो? क्या तुम्हारा गांव कहीं ओर है?’’
तभी वहां कंवलजीत आ गया। वह बोला-‘‘ये कहीं नहीं जाता। कहां जाएगा? इस बेचारे के पास कभी पाकेटमनी तक तो होती नहीं। सही बात तो यह है कि इसकी फीस भी बड़ी मुश्किल से पे होती है।’’
सोनाली ने डांटते हुए कहा-‘‘शटअप। कंवलजीत। तूझे शरम भी है कि नहीं। ऐसे बात करते हैं? फिर मैंने आर्यन से पूछा तेरे से नहीं। समझे।’’
कंवलजीत और जोर से बोल पड़ा-‘‘ओए होए। तूझे काहे को मिर्ची लग रही है? अच्छा। अब समझा। तेरी भी सैमपेथी है आर्यन के साथ न। भूखे-नंगे एक साथ। हाहाहा।’’
सारिया ने बीचबचाव करते हुए कहा-‘‘ये ऐसे नहीं मानेगा। चलो हम सब प्रिंसिपल सर के पास चलते हैं। इस स्टूपिड को मैं पहले भी कई बार वार्निंग दे चुकी है।’’
आर्यन धीरे से बोला-‘‘रहने दो। कंवलजीत ने कौन सा कुछ गलत कहा है।’’ यह कहकर वह क्लास की ओर चला गया। सोनाली ने कहा-‘‘क्लास में क्यों जा रहे हो? अभी तो इंटरवल शुरू हुआ है।’’ यह कहकर वह भी क्लास की ओर चल पड़ी। बाकी स्टूडेंटस खेल में मस्त हो गए।
‘‘आर्यन। साॅरी। मुझे यह सब नहीं पूछना चाहिए था। मेरी वजह से ही वो स्टूपिड़ इतना कुछ कह गया।’’ सोनाली ने आर्यन से कहा। 
आर्यन ने धीरे से जवाब दिया-‘‘अरे नहीं। थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए था। अब देखो न, यदि मैं आज स्कूल नहीं आता तो मुझे कैसे पता चलता कि तुम भी दीवाली नहीं मना पाती।’’ यह सुनकर सोनाली ने हां में सिर हिलाया।
आर्यन कहने लगा-‘‘मुझे अच्छा-सा लगा कि मैं अकेला नहीं हूं। देखा जाए तो तुम मुझसे बहुत ज्यादा पावरफुल हो।’’ यह सुनकर सोनाली हंसने लगी। 
आर्यन कहता रहा-‘‘मेरे पापा को आंखों से नहीं दिखाई देता। ममा पैर से विकलांग है। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चलता है। यही कारण है कि हमारे घर में त्योहार भी ठीक से नहीं मनायें जाते। आस-पास भी हमारे जैसे ही लोग रहते हैं। वो तो स्कूल भी नहीं जाते। कम से कम मैं तो स्कूल आता हूं। लेकिन बम-पटाखों की गूंज मेरे कानों में पड़ती है, तो मैं सोचता हूं कि मैं कब खुशियों भरी दीवाली मनाउंगा।’’
सोनाली ने बीच में टोकते हुए कहा-‘‘ये क्या बात हुई। आर्यन मेरे तो पापा भी नहीं रहे। मेरी दो सिस्टर्स भी हैं। ममा घर में अखबारों को लिफाफे बनाती है। शाॅपकीपर उन्हें खरीदते हैं। इसीसे हमारा खर्चा चलता है। मुझे जितना समय मिलता है, मैं भी ममा की मदद करती हूं। मेरी सिस्टर्स भी हेल्प करती हैं। हम भी इस तरह बम पटाखे छोड़कर दीवाली नहीं मनाते। हम भी हर साल नये कपड़े नहीं बना सकते। हमें पता है कि पूजा-पाठ करके, व्रत रखकर, लक्ष्मी पूजन करने से धन नहीं आता। धन तो मेहनत से कमाया जाता है। लेकिन हम दीया जलाते हैं। हर साल अपने कच्चे मकान की पुताई नहीं कर सकते तो क्या हुआ। उसकी चारों ओर से सफाई तो कर सकते हैं। हम यह करते हैं।’’
यह सुनकर आर्यन चुप रहा। धीरे से बोला-‘‘तभी तो। मुझे देखो। मैं हर साल किसी भी त्योहार के आने से पहले निराश हो जाता हूं। परेशान हो जाता हूं। दीवाली से पहले राखी आई तो मैं रोने लगा। हम दो भाई हैं। अकुल मुझसे छोटा है। सब अपनी बहनों को राखी पहना रहे थे। बदले में भाई अपनी बहनों को रुपए दे रहे थे। एक हम है कि हम दोनों भाईयों की कलाई सूनी रहती है। फिर हम बदले में किसी को रुपए भी कहां दे सकते हैं।’’
सोनाली ने धीरे से कहा-‘‘डोंट वरी। अबकी राखी में मैं तुमहारे हाथ में राखी बांधूंगी। अकुल के भी। आज से तू मेरा भाई हुआ।’’ आर्यन का चेहरा खुशी से चमक उठा। 
आर्यन ने कहा-‘‘ठीक है। अब आगे से हम दीवाली भी साथ मनाएंगे। तू रहती कहां हैं?’’
सोनाली ने बताया-‘‘नहर वाली गली में। सबसे लास्ट में। जहां झोपड़ियां हैं। हमारा कच्चा मकान सबसे लास्ट में है। वहां एक बड़ा पीपल का पेड़ है।’’
आर्यन ने कहा-‘‘वहीं तो जहां एक बड़ा मैदान है। जहां ट्रक खड़े रहते हैं। बच्चे पतंग उडाते हैं।’’ 
सोनाली ने एक दम कहा-‘‘हां-हां। वहीं पे। तू वह जगह जानता है?’’
आर्यन ने कहा-‘‘हां। छुटटी के दिन में नहर पे आता हूं। धोबियों के कपड़े सुखाने में मदद करता हूं। उस दिन मुझे 100 रुपए मिल जाते हैं। नहर वाली गली से पहले जो मुस्तफा धोबी वाली गली है न, वहीं हम रहते हैं। पीली वाली कोठी के पीछे। पुराना मकान है। हम वहां किराये पर रहते हैं।’’ 
सोनाली ने कहा-‘‘हां। हां। मैंने देखी है पीली वाली कोठी। पीली वाली कोठी से पहले जो करयाना स्टोर है। वहां मैं लिफाफे बेचने आती हूं। हर संडे।’’
आर्यन ने कहा-‘‘ये लिफाफे कैसे बनते हैं?’’
सोनाली ने कहा-‘‘वैरी सिंपल। मैं तूझे अभी सिखा देती हूं। तू एक दो दिन हमारे घर आ जा। अलग-अलग साइज के अलग पैसे मिलते हैं। मैं तूझे अकील कबाड़ी की दुकान भी दिखा दूंगी। बस वहां से पुराने अखबार खरीदने हैं। आटे की लेही घर में बनानी है, और हो जाएगा लिफाफे बनाने का काम। सौ लिफाफे के हमें बीस रुपए आसानी से मिल जाते हैं। हम घर में आराम से एक हजार लिफाफे बना लेते हैं। संडे के दिन तो हम दो हजार लिफाफे बना लेते हैं।’’
आर्यन ने कहा-‘‘ठीक है। इस संडे में आता हूं।’’ 
आर्यन संडे को सोनाली के घर गया। अब यह सिलसिला चल पड़ा। आर्यन और सोनाली के परिवार वाले भी इस मेलजोल से प्रसन्न थे। आर्यन के घर में भी लिफाफे बनाने का काम चल पड़ा। आर्यन को आमदनी का यह साधन अच्छा लगा। घर में जो भी लिफाफे बनाये जाते, उन्हें बेचने आर्यन ही जाता। बदले में उसे पांच रुपए मिलते। उसने एक पिगी बैंक खरीद लिया था। अब वह सारे सिक्के पिगी बैंक में जमा करने लगा। 
एक दिन उसने हिसाब लगाया-‘‘साल में तीन सौ पेंसठ दिन होते हैं। अगर तीन सौ दिन के हिसाब से भी मुझे पांच रुपए मिलते रहे, तो यह एक हजार पांच सौ रुपए हो जाएंगे। इस बार की दीवाली मजे में मनाई जाएगी। मैं सोनाली के साथ दीवाली मनाउंगा। बड़ा मजा आएगा।’’ 
वहीं सोनाली भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी। वह भी एक-एक रुपया जोड़ रही थी। उसने भी मन बना लिया था कि बरसों से जो त्योहार घर में नहीं मनाया जाता,अब वह आर्यन के सहयोग से मनाया जाएगा। दोनों परिवार साथ-साथ दीवाली मनाएंगे। वह सोच रही थी कि घर में वह अपनी सहेलियों को बुलाएगी। 
सब कुछ ठीक तरह से चल रहा था। एक दिन की बात है। सोनाली ने स्कूल जाते हुए आर्यन से कहा-‘‘दीवाली को एक महीना ही रह गया है।’’
आर्यन ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘हां। लेकिन अब मैं दीवाली के दिनों में छुट्टी नहीं करुंगा। इस बार मैम को मैं भी बताउंगा कि मैंने दीवाली कैसे मनाई। क्या तुम मेरे साथ दीवाली मनाओगी?’’ सोनाली ने हां में सिर हिलाया।
आज सब पीछे मुड़-मुड़कर देख रहे थे। सोनाली के साथ-साथ आर्यन भी उनकी क्लास में आई नई स्टूडेंट को देखकर हैरान हो रहे थे। प्रातःकालीन सभा में प्रिंसिपल ने बताया था-‘‘बच्चों। भूकंप की वजह से कई घर तबाह हुए हैं। हमारे स्कूल में भी कुछ बच्चे आएं हैं। यह सब भूकंप में अपना सब कुछ खो चुके हैं। हमें इनकी मदद करनी होगी। जिस क्लास में यह स्टूडेंटस पढ़ेंगे, हम सब उनको कोओपरेट करेंगे।’’
इंटरवल हुआ तो सब मैदान में बैठे हुए थे। रुखसार ने कहा-‘‘ये मिड सेशन में नए स्टूडेंटस स्कूल में आ गए हैं। ये क्या पढ़ेंगे और क्या एग्जाम देंगे?’’
कुलविन्दर बोला-‘‘भूंकम राहत है भई। सुना नहीं तुमने, हमें उनकी हैल्प भी करनी है।’’ रैहट स्टीक ने कहा-‘‘यार! हम क्या हैल्प करेंगे? अपना पाॅकेट मनी इन भूख-नंगों को दे दें क्या?’’ 
मोहित ने कहा-‘‘स्कूल मैनेजमेंट करे। कौन रोकता है?’’ 
कंवलजीत ने देखा कि आर्यन और सोनाली उसकी ओर आ रहे हैं। वह बोला-‘‘आईडिया। ’’आर्यन और सोनाली भी तो उसी केटेगरी के हैं। जिस केटेगरी के कुछ बच्चे हमारे स्कूल में आ गए हैं। यह करेंगे न उनकी हैल्प।’’
यह सुनकर सब हंस पड़े। सोनाली और आर्यन ने एक दूसरे का मुंह देखा और चुपचाप अपनी क्लास में जाकर बैठ गए। 
दीवाली से दो दिन पहले तक तो सब कुछ ठीक था। लेकिन फिर न आर्यन स्कूल आया और न ही सोनाली। दीवाली की छुट्टियां हो गईं। स्कूल खुला तो रेहाना मैडम ने क्लास में कहा-‘‘स्टूडेंटस कैसी रही दीवाली? इससे पहले कि तुम सब वन बाई वन सबको बताओ,मैं आर्यन से पूछना चाहती हूं कि वह दीवाली से पहले दो दिन अबसेंट क्यों रहा। उसके बाद सोनाली बतायेगी कि वो भी अबसेंट थी। क्यों?’’
आर्यन सिर झुकाए खड़ा था। वह धीरे से बोला-‘‘मैम। पिछले एक महीने से मैं लिफाफे बना रहा था। उन लिफाफों को बनाने के लिए समय चाहिए था। स्कूल से जाने के बाद होमवर्क करने के बाद जितना टाईम मिलता था, हम यह काम करते थे। लेकिन दीवाली के अवसर पर हमे हजारों लिफाफे बनाकर देने थे। हमने कमीटमेंट किया था।’’
रेहाना मैडम बोली-‘‘कमीटमेंट तो तुमने भी किया था। यही कि अब तुम अबसेंट नहीं रहोगे? फिर?’’
आर्यन ने कहा-‘‘मैम। हमारी क्लाॅस में पिछले ही महीने दो स्टूडेंटस नए आए हैं।’’
रेहाना ने कहा-‘‘हां। हां। ज़हीना और शैफाली। तो क्या हुआ?’’
आर्यन ने कहा-‘‘मैम। मैंने और सोनाली ने ज़हीना और शैफाली के साथ उन सभी बच्चों के साथ दीवाली मनाई है, जो आपदा राहत कैंप में रह रहे हैं।’’
ज़हीना और शैफाली खड़ी हो गई। वे दोनों एक साथ बोली-‘‘मैम। सोनाली और आर्यन ने पूरे कैंप में सब बच्चों के लिए मिठाई दी। हम सबने मिलकर दीये जलाये। साउंडप्रुफ पटाखे छोड़े।’’
ज़हीना ने बताया-‘‘मैम। इन दोनों ने साल भर से अपनी दीवाली मनाने के लिए जो रुपए अपने पिगी बैंक में जमा किये थे, वो भी हमारे लिए खर्च कर दिये ।हम सबके लिए ये स्कूल बैग्स लाए। काॅपीज़ लाये। कुछ के लिए इन्होंने शूज़ भी खरीदे।’’
रेहाना मैम के साथ-साथ क्लास में तालियां बजने लगी। दरवाजे पर प्रिंसिपल के साथ आपदा राहत कैंप के मैनेजर भी खड़े थे।
प्रिंसिपल ने कहा-‘‘हमने तो कहा था। सोनाली और आर्यन ने कर दिखाया। डीएम सर ने स्पेशल दीवाली गिफ्ट भिजवाएं हैं। सोनाली के लिए भी और आर्यन के लिए भी। हमारे स्कूल को भी दस हजार रुपए की हैल्प भिजवाई है। हमें गर्व है कि सोनाली और आर्यन ने वो कर दिखाया, जिसकी वजह से हमारे स्कूल पर न्यूज टीवी चैनलों पर आने वाली है। बधाई।’’
रेहाना टीचर ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘स्कूल मैनेजमेंट भी इन दोनों को पुरस्कृत करेगा?’’
प्रिंसिपल ने कहा-‘‘बिल्कुल। कल प्रातःकालीन सभा में हम सब स्टूडेंटस से अपील भी करेंगे कि त्योहार मनाने का असली कंसेप्ट आर्यन और सोनाली से सीखें। हमारा मन और हमारा मस्तिष्क दया भाव से भरा हो। हम शांत भाव से केवल अपने और अपने परिवार का ही भला न सोंचे। अपने आस-पास भी खुशियां देंखे। यदि आस-पड़ोस में कोई खुश नहीं है तो हम कैसे दीवाली मना सकते हैं? यह हमने इन बच्चों से सीखा। मैं इन्हें सैल्यूट करती हूं।’’
समूची क्लास सोनाली-आर्यन। सोनाली-आर्यन। का नाम पुकार-पुकार कर अपनी खुशी ज़ाहिर करने लगे। वहीं सोनाली और आर्यन की आंखें नम थी। सोनाली ने एक कागज की पर्ची में कुछ लिखा और आर्यन की ओर उछाल दिया।
आर्यन ने पर्ची खोली-‘‘पर्ची में लिखा था। अब अबसेन्ट कभी नहीं।’’
आर्यन ने सोनाली की ओर देखा। बिल्कुल। अब अबसेन्ट कभी नहीं। शायद आर्यन भी यही सोच रहा था। 
॰॰॰
मनोहर चमोली ‘मनु’,भितांई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड। मोबाइल-09412158688

वृक्ष कथा: रहस्य आंसूओं का नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

वृक्ष कथा: रहस्य आंसूओं का 

-मनोहर चमोली ‘मनु’

हमेशा की तरह शहजादा सलीम अपने घोड़े में सवाल तिलस्मी नदी के तट पर पहुंच गया। पौ फटते ही समूचा क्षेत्र पक्षियों के कलरव से गूंज रहा था। पूरब की ओर क्षितिज लालिमा लिए हुई सुबह की शुरूआत का संकेत दे चुका था। शहजादा सलीम के घोड़े की टाप से कई जीव-जंतु अपने स्वभाव के मुताबिक हलचल में आ गये थे। शहजादा सलीम जैसे ही तिलस्मी नदी की ओर बढ़ा तो उसे किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी।
सलीम ने अपनी तलवार खींच ली। वह आवाज की दिशा की ओर मुड़ते हुए बोला-‘‘कौन है वहां? सामने आओ।’’ आवाज की सही दिशा का ठीक-ठीक पता नहीं लग रहा था।
हंसती हुई आवाज फिर आई-‘‘शहजादे सलीम। इधर आइए। मैं नीम का वृक्ष हूं। इधर, जिस पर यह हरी-भरी लता लिपटी है। नीम का एक ही वृक्ष है यहां। हां, इधर आओ।’’
शहजादा ने अपनी तलवार म्यान में रख दी और वह नीम के वृक्ष के पास जा पहुंचा।
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘शहजादे सलीम। मैं सोननगर का कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह हूं। सोननगर के राजा यानि मेरे पिताश्री समरवीर प्रताप सिंह समूचे राज दरबारियों के साथ वन विहार का आनंद ले रहे थे। मैं भी उनके साथ था। वापिस लौटते हुए वन किनारे एक कबिलाई बस्ती थी। बस्ती के बच्चे हाथों में पत्थर लिए हुए थे। वह एक विशाल वृक्ष से आम तोड़ रहे थे।
राजन् यह घटनाक्रम देखने के लिए रुक गए।
वह बोले-‘‘एक हम हैं कि अपने सैनिकों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण देते हैं। यहां देखिए यह बच्चे बाल्यकाल से ही कुशल प्रशिक्षण खेल-खेल में ले रहे हैं।’’
शहजादा सलीम हंसते हुए बोला-‘‘मैं समझ गया। बच्चे आम के वृक्ष में लगे फलों को तोड़ने के लिए पत्थरों से निशाना साध रहे थे। है न?’’
वृक्ष बोला-‘‘जी बिल्कुल। मैंने जवाब दिया था-’महाराज। ध्यान से देखिए। उस विशालकाय वृक्ष के नीचे एक मुनि साधना में रत हैं। वह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जिस वृक्ष के नीचे वह बैठे हैं, उस के फल स्वतः नहीं गिर रहे हैं बल्कि बच्चों के द्वारा फेंके जा रहे पत्थरों का निशाना बनकर नीचे गिर रहे हैं। मुझे डर है कि कहीं कोई पत्थर मुनिवर के न लग जाए।’ मैंने अभी अपनी बात कही थी कि एक पत्थर मुनि के माथे पर जा लगा। मुनिवर चीख पड़े। सभी बच्चे मारे भय के भाग खड़े हुए। राजन सहित हम दौड़कर मुनि के समीप जा पहुंचे। माथे से खून टपक रहा था। हमारे द्वारा पूछने पर भी मुनिवर मौन रहे। वह संकेतों से अपनी बात कह रहे थे। अचानक मुनि की आंखों से झर-झर आंसू टपकने लगे। राजन ने मुनि को महल का आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया। लेकिन वह संकेतों से मना कर चुके थे। हम सभी दुःखी मन से वापिस राजदरबार लौट आए।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘फिर। फिर क्या हुआ?’’
वृक्ष से आवाज आई-‘‘राजन ने दरबार में पूछा-‘क्या कोई मुझे बता सकेगा कि मुनिवर रो क्यों रहे थे?’
दरबार में हर किसी ने अपना-अपना मत प्रस्तुत किया। लेकिन राजन् किसी भी मत से संतुष्ट नहीं थे। अचानक उन्होंने मुझसे कहा-‘कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा अनेक विद्वानों एवं आचार्याें के सानिध्य में हुई है। आपका क्या कहना है।’
शहजादा सलीम ने पूछा-‘‘तो क्या तुमने अपना मत प्रस्तुत नहीं किया?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘क्यों नहीं शहजादे। क्यों नहीं। मैं एक के बाद एक मत प्रस्तुत करता रहा, लेकिन राजन किसी भी मत से संतुष्ट नहीं हुए।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘आपने अपने मत में क्या-क्या तर्क दिये? क्या मुझे बतायेंगे?’’
वृक्ष बोला-‘‘क्यों नहीं। मैंने कहा संभवतः बच्चों को देखकर मुनिवर को अपना बचपन याद आ गया हो। लेकिन राजन् को यह तर्क जंचा नहीं। मैंने दूसरा मत दिया कि हो सकता है कि पत्थर तीव्र वेग से उनके माथे पर लगा है। वे दर्द के कारण रोये हों। इस मत से भी राजन संतुष्ट नहीं हुए। मैंने फिर एक और मत दिया कि चूंकि मुनिवर साधना में लीन थे। संभवतः पत्थर लगने के कारण उनका तप भंग हो गया हो और वह निराशा से भर गए हों। निराशा के चलते वे रोये हों।’ इस मत से भी राजन संतुष्ट नहीं हुए। अचानक उन्होंने मुझे आदेश दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप मेरी यह स्थिति हो गई।
शहजादा सलीम बोला-‘‘आपको आदेश में क्या कहा गया।’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘मुझे राजन ने कहा कि मैं अपने विवेक से,समझ से,सम्पर्क से सही तर्क खोज कर लाऊं कि मुनि पत्थर लगने के उपरांत रोये क्यों? इसके लिए मुझे एक माह का समय दिया गया था। आज मध्य रात्रि तक यह समय समाप्त होने वाला है। मुझे दिए गए आदेश में यह भी कहा गया था कि दिये गए समय के उपरांत मेरे लिए महल के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘लेकिन तुम वृक्ष कैसे बन गए?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘जैसा जिसने बताया, जैसा जिसने कहा,मैंने वो किया। इस एक माह में मैं कई मत राजन् के समक्ष रख चुका हूं। लेकिन सब व्यर्थ। मुझे दिया गया एक माह का समय का समाचार पड़ोसी देश तक भी पहुंच गया। उनके एक गुप्तचर ने मुझसे दोस्त कर ली। वह मुझे इस तिलिस्मी नदी तक ले आया। उसी ने मुझसे कहा कि मैं इस नदी का पानी पीने के उपरात दिव्य ज्ञान प्राप्त कर लूंगा। मैंने जैसे ही इस नदी का पानी पिया मैं वृक्ष बन गया।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘ओह! अब तुम्हें पुनः मनुष्य बनाने के लिए क्या करना होगा?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘शहजादे। वह गुप्तचर अभी अपने राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाया होगा। उसके पास मेरा ख़जर है। वह लाकर यदि आप मेरे तने में घोंप देंगे तो मैं वापिस मनुष्य की देह को प्राप्त कर लूंगा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘मैं उसे कैसे पहचानूंगा?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘उसका दांया कान बायां कान से बड़ा है। वह बाएं पैर से लचक-लचक कर चलता है। उसके चेहरे पर चेचक के दाग भी हैं। उसे आसानी पहचान लोगे। लेकिन वक्त कम है। और हा....’’
 लेकिन यह क्या तब तक शहजादा सलीम और उसका घोड़ा तो हवा से बातें करने लगे थे। शाम होने तलक शहजादा गुप्तचर से ख़ज़र वापिस लेकर लौट आया। जैसे ही शहजादे सलीम ने वह ख़ज़र नीम के वृक्ष के तने पर घोंपा,एक कर्कश आवाज़ के साथ ही वृक्ष भरभराता हुआ तिलिस्म नदी में जा गिरा। वृक्ष के स्थान पर सोननगर का कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह खड़ा था।
कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह हाथ जोड़े खड़ा था। उसका गला भर आया। वह भर्राई हुई आवाज में बोला-‘‘मैं जिंदगी भर आपको याद रखूंगा। इस दिवस की अंतिम पहर बाकी है। मुझे राजमहल लौटना होगा, लेकिन मैं राजन् को किस मत से संतुष्ट करूं? कुछ समझ नहीं आ रहा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘चिंता की कोइ्र्र बात नहीं। मैं हूं न। बस मैं जो कहता हूं उसे ध्यान से सुनो। अपना मत प्रस्तुत करने में यह सहायक होगा। अब देर न करो। मेरे साथ मेरे घोड़े में बैठो।’’
शहजादा सलीम का घोड़ा कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह को लेकर हवा से बातें कर रहा था। वह जल्दी ही राजमहल में जा पहुंचे। राजमहल में राजा सोच में डूबे थे। कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह के आने की सूचना मिलते ही राजा आसन से खड़े हो गए। वह बोले-‘‘मैं स्वयं राजमहल के द्वार पर जाऊंगा। यदि एक माह के अंतराल पर भी कुंवर सही तर्क प्रस्तुत नहीं कर सके तो उन्हें यह नगर छोड़ना होगा।’’ राजा समरवीर प्रताप सिंह महल के मुख्यद्वार पर जा पहुंचे। राजा ने पूछा-‘‘कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह एक माह बीतने को कुछ ही क्षण बाकी हैं। कहिए। उस मुनिवर की आंखों में आंसू क्यों आये?’’
कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया-‘‘महाराज। विनम्रता ही मानव को सज्जन बनाती है। वन में ध्यानमग्न वह मुनि वैरागी हैं। उन्होंने क्रोध पर विजय पा ली है। बच्चों ने वृक्ष पर पत्थर फेंके। बदले में बच्चों को वृक्ष से मीठे फल मिले। लेकिन एक पत्थर मुनिवर के माथे पर जा लगा। मुनिवर का ध्यान टूटा  तो वह सब समझ गए। वह बच्चों को कुछ नहीं दे पाए। यही देख कर मुनिवर की आंखें नम हो गईं। आखिर एक मुनि वन में बच्चों को दे भी क्या सकता है?’’
अखिलेंद्र प्रताप सिंह का उत्तर सुनकर राजा प्रसन्न हो गए। बोले-‘‘कुंवर। तुम्हारी सूझ-बूझ और अनुभव धीरे-धीरे प्रगाढ़ता का आकार ले रही है। अब तुम महल में आ सकते हो। उससे पहले मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं।’’ राजा समरवीर प्रताप सिंह ने अपने पुत्र कुंवर अखिलेंद्र प्रताप सिंह को गले से लगा लिया। वहीं दूसरी ओर शहजादा सलीम अपने घोड़े पर सवार उसी तिलिस्म नदी को ओर बढ़ गया। किसी को नहीं पता कि कल की सुबह कौन मनुष्य तिलिस्म नदी की गिरफ्त से बाहर आएगा।
000  -मनोहर चमोली ‘मनु’,

13 अक्तू॰ 2015

साहित्य जगत में चारण और भाट आज भी हैं

साहित्य जगत में चारण और भाट आज भी हैं


-मनोहर चमोली ‘मनु’


जब से साहित्य पढ़ना आरंभ किया है, तब से तो नहीं, लेकिन जब से साहित्य जगत के भीतर गुटों और साहित्य में राजनीति का अहसास होने लगा, कुछ बड़ों ने कराया तो कुछ मित्रों ने कानों में कहा, तब से गौर फरमाया तो कई बातें पता चली। ये बातें कुछ नई नहीं हैं। लेकिन कोई इन बातों पर गौर नहीं करना चाहता। गौर नहीं कराना चाहता। खुद से किसी को नाराज न करने का डर भी हो सकता है। दूसरा डर खुद को अलग-थलग ने पड़ने का डर भी है। तीसरा जो हो रहा है उस पर किसी छिपे ऐजेंडे का भान भी नहीं होता होगा, अधिकतर लोगों को। 

मैं यहां एक बात पर ध्यान दिलाना चाहता हूं। अक्सर मैंने इस बात को कहा भी है। साहित्यकारों ने माना भी है। लेकिन पता नहीं क्यों फिर भी उस धारा में सब शामिल हुए जाते हैं। अब आप कहेंगे कि वह है क्या। बताता हूं। स्वनाम धन्य, साहित्यकार, बुजुर्ग साहित्यकार, चर्चित-अचर्चित साहित्यकार के अवसान हो जाने पर उसके नाम पर एक से बढ़कर एक विशेषांक निकालना जैसे शगल हो गया है। उस अमुक साहित्यकार के जीवित रहने पर वो जो पीठ पीछे थाली में छेद करने की स्थिति में रहते हैं, वे देहावसान के बाद उसी की शान में कसीदे गढ़ते लेख लिखते हैं। 

दुःख होता है, जिस साहित्यकार के अंतिम दिनों में, महीनों में ही नही ंसाल दो साल से जो मिला ही नहीं, वह उसके साथ के रसभरे संस्मरण लिखता है। वह संपादक जो उस साहित्यकार की रचनाएं नहीं छापता रहा है, वह अब उन पर एक से बढ़कर एक कथित नायाब विशेषांक निकालने लगता है। वह साहित्यकार जो देह छोड़ चुके साहित्यकार से छत्तीस का आंकड़ा रखता था, वह भावपूर्ण श्रृद्धा के लेख श्रृंखलाएं लिखता है। एक से बढ़कर एक आयोजन किये जाते हैं। दिवंगत के नाम पर कई पुरस्कार और सम्मान आरंभ कर दिये जाते हैं। उसी के नाम पर जिसे जीते जी कुछ न दे पाए। उसका साथ न कर पाए। नामचीन पुरस्कार-सम्मान की कमेटी में रहते हुए उसी की रचनाओं को थोथा,उथला और कूड़ा तक कह गए। वे ही कालांतर में उसे लेखन का मसीहा घोषित करते घूमते हैं।  

आखिर क्यों? चर्चा की तो बड़ी दिलचस्प बातें सामने आईं। एक तो यह कि मरना तो हर किसी को है। जो जीते जी अपने बारे में इतना कुछ नहीं जान पाया, उसका तर्पण करने के नाम पर ही सही, कुछ कर लिया जाए। क्यों? क्योंकि जीते जी तो लड़े भी,उससे भिड़े भी। यहां-वहां कानाफूसी भी की। बुराईयां भी दी और धन-मान-सम्मान के रास्ते धकियाया भी, तो अपना लोक सुधारने के लिए कुछ अच्छी बात कर लेने में क्या जाता है। दूसरा इस बहाने दो चार लेख और लिख लिए जाएं। वैसे नही ंतो विशेषांकों में उपस्थिति दर्ज हो जाए। तीसरा साहित्य जगत में और इस दुनिया से जाने वाले के कट्टर समर्थकों, शुभचिंतकों की निगाह में संवेदनशील बन लिया जावे। चैथा अब वो तो चला गया, कुछ भी लिख लो, लिखा हुआ छपने पर भला तसदीक कौन करेगा। 

मुझे यह जानकर अटपटा लगा। कुछ इस तरह के आयोजनों में भी गया और कुछ विशेषांकों को उलटा और पलटा भी। पढ़ा भी। कई मामलों में उपरोक्त बातें सही भी साबित हुई। दुनिया से चले गए साहित्यकार के साथ बिताए दिनों,पलों का वर्णन एक से बढ़कर एक। लेकिन उस साहित्यकार की रचना पर कोई बात नहीं। दस फीसद पन्नों तक में भी उस साहित्यकार की रचनाओं को स्थान नहीं। उस साहित्यकार की रचनाओं की कोई समीक्षा नहीं। हां उस रचनाकार के बारे में एक से बढ़कर एक जीवंत संस्मरण। उसका इतना गहन रेखाचित्र खींच दिए जाते हैं कि यदि दिवंगत जिंदा हो जाए तो चरण पकड़ ले। मानों साहित्यकार इंसान नहीं था, देवता था। 

एक बात तो है मित्रों। साहित्यकारों में ही क्यों, राजा-रजवाड़ों में भी तो आत्ममुग्धता के साथ-साथ समाज में ख्याति चाहने की आकांक्षा रही है। इसी के चलते महत्वाकांक्षी क्या-क्या नहीं कर डालता। अपनों को बेगाना कर लेता है। बेगानों को अपना कर लेता है। सही-गलत की राह से जुदा दूसरी ही राह बना लेता है। गुट बना लेता है। गुट बनवा देता है। अपने को महत्वपूर्ण बनाने के लिए ऐसा रास्ता पकड़ लेता है कि लोग जब देखे तो उन्हें झुककर देखना पड़े। कुछ कहना पड़े तो विनम्रता से कहना पड़े। आलोचना करने की गुंजाइश वहां नहीं बचती। 

कितना अच्छा हो कि इस झूठ के प्रपंच को बंद कर दिया जाए। हम क्यों इतना ढोंग पालते हैं। चाटुकारिता और झूठ का मुलम्मा इतना सूक्ष्म है कि किसी को दिखाई नहीं देता! दिखाई देता है। सब इन सब झूठे विशेषांकों-सम्मानों-समारोहों में उपस्थित तो होते हैं लेकिन मौका मिलते ही सच्चाई उगल देते हैं। वह संबंधों,सिद्वांतों,रवायत और अपनी उपस्थिति की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन इससे क्या हासिल। आज जब हम प्रेमचंद,निराला, सूर, तुलसी,मीरा प्रसाद,जायसी आदि के बारे में पढ़ते हैं तो उनका जीवन चित्र कम रचना चित्र ही अधिक सामने आता है। आज स्थिति उलट है। इस सदी की शुरूआत उलट परंपरा से हो रही है क्या? रचनाकारों की रचनाओं के चित्र कम उसके जीवन चित्र अधिक पढ़ने को मिलता है। 

मित्रों मैं यह नहीं कहता कि जीवन परिचय पाठकों के सामने नहीं आना चाहिए। आना चाहिए। लेकिन क्या पाठक रचनाओं का आस्वाद अधिक लेना चाहता होगा या रचनाकार के जीवन के बारे में अधिक जानना चाहता होगा? इस संसार से शरीर छोड़कर जाने वाले रचनाकार के साथ उन दूसरे रचनाकारों के अप्रमाणिक संस्मरण-किस्से जो किस्सा गढ़ने में अधिक माहिर हैं। ज़रा सोचिए। सोचकर मुझे भी बताइएगा। और अंत में एक बात आपसे भी, कोशिश करें कि ऐसा कुछ आप कतई न लिखें जो झूठ और काल्पनिकता के ताने-बाने में बुना जाए। हमें याद रखना होगा कि किसी के चले जाने के बाद उसके साथ बिताए गए असल जीवन को कहानी-सा गढ़ना उसे गाली देना ही होगा। 

पढ़ने के बाद विमर्श की गुंजाइश हो तो दूसरों से चर्चा कीजिएगा। यदि अपच्य हो तो मुझसे चर्चा कीजिएगा। सादर,
-मनोहर चमोली ‘मनु’
chamoli123456789@gmail.com

6 जून 2015

नन्हे सम्राट. june 2015, पतंग की डोर ने पकड़ा चोर -मनोहर चमोली ‘मनु’

पतंग की डोर ने पकड़ा चोर

-मनोहर चमोली ‘मनु’


अभी सुबह हुई थी कि माधो दहाड़े मारकर रोने लगा। आस-पड़ोस के लोग भी इकट्ठा हो गए। रामरती ने कहा-‘‘माधो ने कितनी मेहनत से कद्दू की बेलें लगाई हैं। इस बार फसल भी अच्छी हुई है। अब जब कद्दूओं को बेचने का समय आ गया है तो कोई इसके खेतों से कद्दू चोरी कर रहा है।’’माधो ने रोते हुए कहा-‘‘काकी। आज रात तो चोर उसी कद्दू को ले गया, जिसका खरीददार मुझे सौ रुपए एडवांस दे गया है। वह आता ही होगा। अब मैं उसे क्या मुंह दिखाऊंगा।’’ तभी श्रेया भी वहां पहुंच गई। श्रेया के पापा पहले से ही वहां मौजूद थे। श्रेया ने पूछा तो उसके पापा ने सारा किस्सा उसे बता दिया।
श्रेया बोली-‘‘माधो अंकल। रोते क्यों हो? आपके खेतों में तो कद्दू ही कद्दू लगे हैं।’’ यह सुनकर सब हंसने लगे। रामरती ने श्रेया से कहा-‘‘बच्ची। अगर हर रात एक-एक कद्दू चोरी होता रहा तो माधो को उसकी मेहनत-मजदूरी भी नहीं हासिल होगी।’’ श्रेया ने कहा-‘‘तो आप लोग चोर को क्यों नहीं पकड़ लेते।’’ पापा ने कहा-‘‘श्रेया माधो के साथ-साथ अब्बास और कुलवंत ने कई दिन रखवाली भी की। लेकिन चोर चुपचाप एक न एक कद्दू तो ले ही जाता है।’’ 

अलबर्ट जाॅन ने गुस्से में कहा-‘‘मैं पूरी रात पूरे गांव के दो-दो चक्कर लगाता हूू। हांक लगाता रहता हूं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि चोर कोई बाहर का आदमी नहीं है। चोर हमारे गांव का ही है। लेकिन समझ में नहीं आता कि बड़े-बड़े कद्दू चुरा कर वह करता क्या है? मंडी में तो बेच नहीं सकता। बड़े-बड़े कद्दू खा नहीं सकता।’’

राधेश्याम बोला-‘‘अब तो एक ही उपाय है। हर घर की तलाशी ली जाए। कद्दू चोरी हो रहे हैं कोई सूई तो नहीं है जो मिलेगी नहीं।’’ श्रेया बीच में बोल पड़ी-‘‘क्या एक चोर को पकड़ने के चक्कर में घर-घर की तलाशी लेना ठीक है?’’

रामरती बोली-‘‘बिटिया ठीक कहती है। मैं अपने घर की तलाशी क्यों लेने दूं? मैं क्या चोर हूं?’’ श्रेया माधो के पास जाकर बोली-‘‘क्या मैं आपकी मदद कर सकती हूं?’’ यह सुनकर सब हंस पड़े। माधो ने श्रेया के सिर पर हाथ रखते हुए कहा-‘‘नन्ही बच्ची। भला आप मेरी क्या मदद करोगी। ये सब लोग तो कोशिश कर कर के थक गए हैं। पूरे सात दिनों से मेरे खेतों से कद्दू चोरी हो रहे हैं।’’

अलबर्ट जाॅन ने कहा-‘‘आज की रात चोर पकड़ने का मौका श्रेया को दे दिया जाए। अरे! आजकल के बच्चांे का दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है। क्या पता बात बन जाए।’’ श्रेया के पापा भी हैरान थे। वह श्रेया से बोले-‘‘लेकिन श्रेया। तुम्हारा क्या प्लान है? ज़रा मैं भी तो सुनूं।’’ श्रेया बोली-‘‘नहीं पापा। सब कुछ सीक्रेट होगा। चोर बड़ा होशियार है। हो सकता है वह यहीं-कहीं हमारी बात सुन रहा हो। आज तो मैं प्लान करूंगी कि क्या करना है। कल सोचूंगी कि चोर को कैसे पकड़ना है। परसो से चोर कद्दू चोरी नहीं कर सकेगा। यदि करना चाहेगा तो पकड़ा जाएगा। चलो पापा।’’ यह कहकर ऋचा चली गई। 

माधों के खेत से भीड़ छंटने लगी।  दोपहर के बाद शाम हुई और फिर रात हो गई। गांववासी नींद ले रहे थे। अचानक घंटियां बजने लगी। घंटियों की आवाज माधो के खेत से आ रही थी। थोड़ी देर में ही मशाल जलाए कई ग्रामीण माधो के खेत में आ पहुंचे।

राधेश्याम ने हंसते हुए कहा-‘‘ऋचा का प्लान काम आया। चोर ने सोचा होगा कि दो दिन में जितने कद्दू तोड़ लिए जाएं वहीं अच्छा। चोर भला परसों तक क्यों रुकता।’’ तभी ऋचा टार्च हाथ में लिए अपने पापा के साथ आ पहुंची।

अलबर्ट जाॅन ने हैरानी से पूछा-‘‘ये खेत से घंटियों की आवाज कैसे आई?’’ माधो बोला-‘‘मैं बताता हूं। ऋचा बिटिया पतंग उड़ाने वाला मजबूत मांजा ले आई थी। मैंने कई जगह पर मांजा छोड़ दिया था। मांजा का दूसरा सिरा घंटियों पर बंधा था। चोर रात के अंधेरे में पतले धागे को देख नहीं पाया। मांजा चोर के पैर से उलझा और घंटिया बज गईं। ऋचा का कहना है कि यदि चोर नंगे पांव खेत में आया होगा तो उसके पैरों में खरोंचें जरुर आई होंगी।’’

‘‘यदि पैरों में खरोंचें न आई हो तो?’’ अब तक रामरती भी शाॅल ओढ़कर खेत में आ पहुंची थी। ऋचा बोली-‘‘ताई जी। अब सबसे पहले हर घर में चलकर तलाशी ली जानी है। सबसे पहले पैर देखने हैं। बाकि का काम मेरा है।’’ सब झुंड बनाकर चलने लगे। पहले गोपी चाचा का घर आया। फिर रहमत मियां का फिर भगतराम का और फिर दिया ताई का। एक आवाज में हर कोई दरवाजा खोलता और तलाशी में सहयोग करता। दीनू का घर आया तो आवाज लगाने पर भी दीनू ने दरवाजा नहीं खोला। माधो चिल्लाया-‘‘दीनू दरवाजा खोल नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे।’’ काफी देर बाद दीनू ने दरवाजा खोला। जम्हाई लेता हुआ बोला-‘‘क्या हुआ? इतनी रात क्यों परेशान कर रहे हो।’’ 

तभी रामरमी बोल पड़ी-‘‘अरे दैया। दीनू ये तेरे पैरों में खरांेच कैसे आई?’’
दीनू सकपकाया। कहने लगा-‘‘वो क्या है न कि मैं तार-बाड़ कर रहा था। बस खरोंच आ गई।’’
‘‘तार-बाड़? तेरे सारे खेत तो बरसों से बंजर हैं। फिर किसकी तार-बाड़ कर रहा था?’’ राधेश्याम ने पूछा।

दीनू बोला-‘‘ये बताना मैं जरूरी नहीं समझता।’’ 

तभी ऋचा बोल पड़ी-‘‘दीनू चाचा। आज माधो चाचा के खेत का कद्दू कहां रखा है?’’ दीनू ने ऋचा को डांटते हुए कहा-‘‘ऐ छोकरी। ज़बान संभाल कर बात कर। तू मुझे चोर समझती है? जा मेरे घर के भीतर की तलाशी ले ले। कद्दू तो क्या कद्दू का बीज तक न मिलेगा। पैरों में खरोंच के आधार पर कोई मुझे चोर साबित नहीं कर सकता। समझी तू।’’

ऋचा टार्च लेकर दीनू के घर के अंदर चली गई। खूंटी पर टंगे कपड़ों को उलट-पलट कर देखने लगी। रामरती ताई ने पूछा-‘‘बेटी ऋचा। इस दीनू के कपड़ों में तू क्या खोज रही है? कद्दू कौन सा कमीज के जेबों में छिपाया होगा इसने।’’ ऋचा खुशी से चिल्लाई-‘‘मिल गया !’’

‘‘हें ! मिल गया? लेकिन मुझे तो नहीं दिखाई दे रहा। कहां है?’’ रामरती ने पूछा। ऋचा ने कहा-‘‘रामरती ताई। ये नीली कमीज है न। इस के बांये काॅलर में ये सफेद-सफेद क्या है?’’ रामरती ने कमीज छूकर देखा। दांये हाथ की अंगूलियों से कमीज को रगड़ा। फिर कहा-‘‘ये तो इसकी कमीज पर राख लगी है। कहीं ये दीनू शमशान घाट पर तो काम नहीं करता?’’ ऋचा हंसते हुए कहने लगी-‘‘ताई जी। दीनू चाचा ने आज माधो चाचा के खेत से कद्दू चुराया है। यही नहीं वह कद्दू को बांये कंधे पर उठा कर लाएं हैं। जरूर कद्दू भी यहीं-कहीं होगा।’’

दीनू बड़बड़ाते हुए भीतर चला आया। कहने लगा-‘‘ये लड़की क्या बकवास कर रही है। तलाशी हो गई हो तो चलो निकलो मेरे घर से।’’ अलबर्ट जाॅन ने पूछा-‘‘ऋचा। कमीज में राख लगी है। ये तो साफ हो गया। लेकिन इससे तुम यह कैसे कह सकती हो कि दीनू माधो के खेत से कद्दू लेकर आया है।’’

 माधो हंसते हुए कहने लगा-‘‘मैं बताता हूं। ऋचा और मैंने खेत के बड़े-बड़े कद्दूओं पर राख मल दी थी। दीनू को रात के अंधेरे में कद्दू तो दिखाई दिया लेकिन उस पर मली राख का मामला यह समझ नहीं पाया। कद्दू भारी था, यह उस कद्दू को कंधे पर उठाकर लाया है।’’ रामरती के हाथ में लाठी थी। इतना सुनते ही रामरती ने दीनू की टांग पर लाठी दे मारी। राधेश्याम ने दीनू का हाथ पकड़ लिया। अलबर्ट जाॅन बोला-‘‘दीनू सच-सच बता कद्दू कहां हैं? क्या कोतवाल को फोन करूं? कोतवाल मेरा दोस्त है। उसके चार लट्ठ पड़ेंगे तो ज़बान सब कुछ सच उगल देगी।’’

दीनू हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘पुलिस तक क्यों जाते हो। घर के पिछवाड़े गड्ढा खोदोगे तो सारे के सारे कद्दू वहीं दबे हुए मिल जाएंगे। क्या करता। गांव में कोई काम नहीं है। मैं अनपढ़ शहर जा नहीं सकता। पेट भरने के लिए कद्दू चोरी करना मुझे आसान तरीका लगा। मौका देखते ही मैं इन कद्दूओं को शहर की मंडी ले जाता। कुछ रुपए मिल जाते तो मेरा कुछ दिनों का काम चल जाता।’’ माधो बोला-‘‘भाई मेरे अपना पेट भरने के लिए दूसरे के खेतों में चोरी करना भला काम है? मेरे साथ मेरे खेतों में काम कर। मजदूरी भी दूंगा और भरपेट भोजन भी।’’

 रामरती हंसते हुए बोली-‘‘ये लो। आए तो थे चोर पकड़ने। यहां तो एक को काम मिल गया और दूसरे का संगी-साथी। ये हुई न बात। अब चलो रात बहुत हो गई।’’ ऋचा के पापा बोले-‘‘लेकिन दीनू। कल सुबह सबसे पहले सारे के सारे कद्दू माधो के घर पर पहुंचा देना। अब हमारी जासूस ऋचा को भी नींद आ रही है।’’ यह सुनकर सब हंस पड़े।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’,पोस्ट बाॅक्स-23 भितांई,पौड़ी गढ़वाल. 246001 उत्तराखण्ड.मोबाइल-09412158688

12 मई 2015

वृक्ष कथा : राज मुकुट 
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-मनोहर चमोली ‘मनु’
पौ फटते ही समूचा वन क्षेत्र पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा था।पूरब की ओर क्षितिज लालिमा लिए हुई सुबह होने का संकेत दे चुका था। शहजादा सलीम के घोड़े की टाप से कई जीव-जंतु उचक-उचक कर अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे थे। शहजादा सलीम जैसे ही तिलस्मी नदी की ओर बढ़ा तो उसे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी। सलीम ने अपनी तलवार खींच ली। वह आवाज की दिशा की ओर मुड़ते हुए बोला-‘‘कौन है वहां? सामने आओ।’’

सिसकती हुई आवाज फिर आई-‘‘शहजादे सलीम। इधर आइए। मैं चंदन का वृक्ष हूं। इधर, जिस पर यह हरी-भरी लता लिपटी है।’’
शहजादा ने अपनी तलवार म्यान में रख दी और वह चंदन के वृक्ष के पास जा पहुंचा। 
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘शहजाते सलीम। वक़्त बहुत कम है। मैं राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह हूं। आवेश में आकर मैंने अपना मुकुट अपने सलाहकार को पहना दिया। मुझे शर्त लगाने का शौक रहा है। एक दिन में सलाहकार के साथ अपने बागीचे में टहल रहा था। मेरे सलाहकार असलम बेग ने मुझे एक प्राचीन कुआं दिखाया। वह मेरे बागीचे में ही था। वह सूखा हुआ था। मेरा मुकुट उस कूप में गिर गया। सलाहकार ने कहा कि अब यह मुकुट बाहर कैसे आएगा। मैंने सैनिकों को बुलाना चाहा तो मेरा सलाहकार बोला कि ऐसे नहीं। यदि आप वाकई राजन् हैं तो विवेक से इसे बाहर निकालिए। शर्त यह है कि न इसे रस्सी डालकर निकाला जाए, न ही किसी जीव की मदद ली जाए और न ही सीढ़ी डालकर मुकुट को निकाला जाए। यदि कोई युक्ति लगा सकें तो लगाइए। पूरा एक वर्ष आपको दिया जाता है। यदि एक वर्ष के भीतर आप अपने मुकुट को निकाल सके तो मैं क्या मेरी आने वाली सात पीढ़ीयां राजमहल की निःशुल्क सेवा करेगी यदि नहीं तो राजगद्दी मुझे सौंप दीजिए। आप चाहे तो इस संबंध में किसी की भी सलाह ले सकते हैं। कहिए मंजूर।’’
‘‘ओह! यह बात है।’’ शहजादा सलीम बोला।
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘बस फिर क्या था मैंने आवेश में अपने सलाहकार की बात मान ली। मैंने सोचा कि कोई न कोई तो मुझे कूप में गिरे मुकुट को निकालने की तरकीब बता ही देगा। एक बरस का समय तो बहुत होता है। लेकिन मैं एक साधू के कहने पर इस तिलिस्म नदी के पास आ गया और गलती से मैंने इस नदी का पानी पी लिया और मैं वृक्ष बन गया। एक बरस पूर्ण होने को बस सात दिन शेष हैं। यदि वह मुकुट नहीं निकला तो मैं अपनी राजगद्दी कभी हासिल नहीं कर सकूंगा और हमेशा वृक्ष ही बना रहूंगा। मेरी मदद करो।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘लेकिन तुम्हें दोबारा इंसानी जिस्म में कैसे लाया जा सकता है?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘पहाड़ी के उस पार काला राक्षस रहता है। उसका एक दांत पत्थर का है। यदि वह किसी तरह तोड़ दिया जाए तो मैं दोबारा इंसानी शक्ल में आ सकता हूं। लेकिन वक्त कम है।’’ शहजादा सलीम ने इससे आगे कुछ नहीं सुना। वह अपने घोड़े पर सवार होकर पहाड़ी के दूसरी ओर चल पड़ा।
हवा से भी तेज घोड़े की चाल के चलते शहजादा शाम से पूर्व ही पहाड़ी के दूसरी ओर पहुंच गया। काला राक्षस दोपहर का भोजन कर गुफा में लेटा हुआ था। खर्रांटों की आवाज से गुफा तक कम्पन कर रही थी। 
शहजादा सलीम हर तरह की परिस्थितियों के लिए तैयार था। पीठ के बल लेटा काला राक्षस चिर निद्रा में सोया हुआ-सा था। सलीम घोड़ा समेत राक्षस के पेट पर कूद पड़ा। अचानक हुए हमले से बेख़बर काला राक्षस चिल्ला उठा-‘‘ओह! मारा।’’
बस इसी क्षण राक्षस के खुले मुंह पर अलग से चमक रहा पत्थर का दांत सलीम ने देख लिया। इससे पहले राक्षस कुछ समझ पाता,सलीम ने तलवार से उस पत्थर के दांत पर प्रहार किया। दांत दूसरे ही पल दो टूकड़ों में बंट गया। दोनों टूकड़े उछल कर राक्षस की आंख में जा घुसे। राक्षस की आंखों से खून की लहर दौड़ पड़ी। दूसरे ही पल शहजादा सलीम का घोड़ा उलटे पांव लौट गया। तिलस्म नदी के पास पहुंचते ही एक राजा हाथ जोड़े खड़ा था। वह कोई नहीं,राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह ही था, जो राक्षस के प्रकोप से अभी-अभी मुक्त हुआ था।
‘‘चलिए राजन्। वक्त कम है।’’ शहजादा सलीम ने राजा को अपने घोड़े पर बिठाया ही था कि राजा ने शहजादा सलीम से पूछा-‘‘मेरा कूप में गिरा मुकुट बाहर कैसे आएगा?’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘आपके महल में पहुंचने से पहले ही उसका हल निकाल लिया जाएगा। मुझे और मेरे मस्तिष्क को सोचने का वक्त तो दीजिए। आप कुछ पल के लिए मौन रहिए।’’
रात घिर चुकी थी। समूचा राजमहल सो रहा था। असलम बेग इस बात से बेखबर था कि राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह ठीक एक साल समाप्त होने के आखिरी सप्ताह में लौट आएगा। राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह के निष्ठावान सेवकों ने सारा किस्सा सुनाया। 
मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा-‘‘इक्यावन सप्ताह हो गए हैं। मैं अपने राज्य से बाहर रहा, ऐसा लगता है कि मेरा राज्य बेहद मुसीबत में है। अब चिंता की कोई बात नहीं, मेरे साथ शहजादा सलीम है। उसके पास हर समस्या का हल है। कूप वाली पहेली सुलझ ही जाएगी।’’
शहजादा सलीम ने सेवक से कहा-‘‘जल्दी से एक परात भर कर गीला गोबर लाइए। उसे सुबह होने से पहले ही कूप में डाल देना है। अगली चार रातों में गोपनीय ढंग से उस गोबर को अग्नि का ताप देना है।’’
सेवक ने कहा-‘‘मैं अभी यह काम कर देता हूं। लेकिन अग्नि का ताप क्यों?’’
शहजादा सलीम धीरे से बोला-‘‘राजा का मुकुट सूखे कूएं में गिरा हुआ है। उस पर एक परात गीला गोबर फंेकने से मुकुट गोबर में सन जाएगा। यदि गीला गोबर तीन-चार दिनों में सूख जाता है तो हमारा काम हो गया समझो।’’
‘‘मगर कैसे?’’ मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने पूछा।
शहजादा सलीम ने कहा-‘‘अति साधारण सी बात है। गीला गोबर सूख कर मुकुट को जकड़ लेगा। हम पांचवे दिन या छठे दिन महल में उपस्थित हो जाएंगे। आप अपने सलाहकार को शर्त पूर्ण होने के आखिरी दिन मुकुट को कूप के बाहर लाने की बात कहंेगे। बस मुकुट बाहर आ जाएगा।’’
सेवक बोला-‘‘लेकिन शहजादा सलीम जी कैसे?’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘दरबारी या सैनिकों से हम कूप को भरने की बात कहेंगे। चूंकि मुकुट गोबर में सना हुआ है, सना हुआ मुकुट वाला गोबर सूख चुका होगा, जल से भरने पर वह कुछ देर बाद तैरता हुआ कुएं के उपरी सतह पर आ जाएगा। गोबर में चिपका हुआ मुकुट निकाल लिया जाएगा।’’
‘‘अरे वाह। हां यह तो हर कोई जानता है कि गोबर के उपले जल में तैरने लगते हैं। क्या बात है। मैं अभी जाता हूं। लेकिन कूए में आग की ताप कैसे दी जाएगी?’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘जिस तरह से रस्सी से हम पात्र में पानी खींचते हैं, उसी तरह से जलते अंगारों से भरी अग्नि गोबर को सूखाने में मदद करेगी, लेकिन यह काम बड़ी सावधानी से करना है। किसी को कानों कान खबर न हो।’’
ऐसा ही किया गया। राजा के विश्वस्त कर्मठ और योग्य सेवकों ने रात-रात जागकर कूप में फेंके गए गोबर को बड़ी सावधानी से ताप देकर सुखाया।
साल के अंतिम दिवस पर रहस्मय ढंग से राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह दरबार में उपस्थित हो गया। अगले दिन असलम बेग अपने राजतिलक की बैठक में व्यस्त था। राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह को देखकर असलम बेग सिहांसन से उठा खड़ा हुआ-‘‘राजन् आप! लेकिन शर्त तो पूरी नहीं हुई। ये सिंहासन अब आपका कैसे हो सकता है?’’
राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह बोले-‘‘यदि शर्त पूरी कर दूं तो?’’
असलम बेग बोला-‘‘हां । लेकिन,,,अब कैसे? अब तो ,,,,आज तो,,,,,,।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘समूचा दरबार देखेगा। वैसे भी एक बरस होने को तीन पहर बाकी हैं। आपको मुकुट कुएं से बाहर आता हुआ दिखाई देगा, तब तो किसी तरह की कोई अड़चन नहीं होनी चाहिए।’’
असलम बेग की बदसलूकी से समूचा दरबार परेशान हो चुका था। अधिकतर दरबारी एक साथ बोल पड़े-‘‘कोई अड़चन नहीं। हम सब भी देखना चाहेंगे कि कूप में गिरा मुकुट कूप में बिना उतरे तल से बाहर कैसे आएगा। वह भी बिना रस्सी के या बिना सीड़ी के। चलिए। हम भी चलते हैं।’’
समूचा दरबार बागीचे में इकट्ठा हो गया। राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह के वापिस लौटने की ख़बर आग की तरह फैल गई। प्रजा भी महल की ओर उमड़ आई।
असलम बेग ने कूप में झांका। वह बोला-‘‘एक बरस होने का आया, पता नहीं मुकुट किस हाल में होगा। अब राजन् इसे बाहर निकालेंगे कैसे?’’
राजा ने सेवकों से कहा-‘‘शर्त के अनुसार न तो मैं कूप में जा सकता हूं और न ही कोई मेरा सहायक। न ही रस्सी से या किसी जीव के सहारे मुकुट को बाहर निकालना है, लेकिन हम उसे किसी तरह से बाहर निकालेंगे। मैं सेवकों को आदेश देता हूं कि पर्याप्त जल से इस कूप को भर दिया जाए।’’
असलम बेग हंस पड़ा-‘‘ये कैसी मूर्खता है? भला रत्नों से जड़ा मुकुट सूखे पत्ते की तरह कूप के उपरी सतह पर थोड़े न आ जाएगा। भरो-भरो। इस कूप को भरो। लेकिन जल्दी करो। सांझ होने से पहले यह कर लो। चलो एक दिन मैं और देता हूं। कल शाम तक इस कूप में गिरे मुकुट को बाहर निकलता हुआ देखेंगे। अन्यथा मैं राजा।’’
‘‘दो पहर की मशक्कत के बाद यह क्या! मुकुट गोबर की पपड़ी के साथ चिपका हुआ कूप के ऊपरी सतह पर तैर रहा था।’’ राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह की जय-जयकार होने लगी।
असलम बेग ने माथा पकड़ लिया। हाथ जोड़कर कहने लगा-‘‘राजन्। मैं लोभ के वशीभूत ऐसी शर्त लगा बैठा। लेकिन मुझे नहीं पता था कि हर समस्या का समाधान है। लेकिन यह हुआ कैसे?’’
राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह ने समूची प्रक्रिया विस्तार से बता दी। एक बार फिर राजा की जय-जय कार होने लगी।
राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह को अचानक ध्यान आया कि वह शहजादा सलीम का परिचय कराना भूल गए। लेकिन यह क्या ! शहजादा सलीम घोड़े पर सवार महल के द्वार से बहुत दूर जा चुका था। राजा मानवेन्द्र प्रताप सिंह जानते थे कि शहजादा सलीम का घोड़ा फिर से उसी तिलस्मी नदी की दिशा की ओर जा रहा होगा। 

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-मनोहर चमोली ‘मनु’
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