6 जून 2015

नन्हे सम्राट. june 2015, पतंग की डोर ने पकड़ा चोर -मनोहर चमोली ‘मनु’

पतंग की डोर ने पकड़ा चोर

-मनोहर चमोली ‘मनु’


अभी सुबह हुई थी कि माधो दहाड़े मारकर रोने लगा। आस-पड़ोस के लोग भी इकट्ठा हो गए। रामरती ने कहा-‘‘माधो ने कितनी मेहनत से कद्दू की बेलें लगाई हैं। इस बार फसल भी अच्छी हुई है। अब जब कद्दूओं को बेचने का समय आ गया है तो कोई इसके खेतों से कद्दू चोरी कर रहा है।’’माधो ने रोते हुए कहा-‘‘काकी। आज रात तो चोर उसी कद्दू को ले गया, जिसका खरीददार मुझे सौ रुपए एडवांस दे गया है। वह आता ही होगा। अब मैं उसे क्या मुंह दिखाऊंगा।’’ तभी श्रेया भी वहां पहुंच गई। श्रेया के पापा पहले से ही वहां मौजूद थे। श्रेया ने पूछा तो उसके पापा ने सारा किस्सा उसे बता दिया।
श्रेया बोली-‘‘माधो अंकल। रोते क्यों हो? आपके खेतों में तो कद्दू ही कद्दू लगे हैं।’’ यह सुनकर सब हंसने लगे। रामरती ने श्रेया से कहा-‘‘बच्ची। अगर हर रात एक-एक कद्दू चोरी होता रहा तो माधो को उसकी मेहनत-मजदूरी भी नहीं हासिल होगी।’’ श्रेया ने कहा-‘‘तो आप लोग चोर को क्यों नहीं पकड़ लेते।’’ पापा ने कहा-‘‘श्रेया माधो के साथ-साथ अब्बास और कुलवंत ने कई दिन रखवाली भी की। लेकिन चोर चुपचाप एक न एक कद्दू तो ले ही जाता है।’’ 

अलबर्ट जाॅन ने गुस्से में कहा-‘‘मैं पूरी रात पूरे गांव के दो-दो चक्कर लगाता हूू। हांक लगाता रहता हूं। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि चोर कोई बाहर का आदमी नहीं है। चोर हमारे गांव का ही है। लेकिन समझ में नहीं आता कि बड़े-बड़े कद्दू चुरा कर वह करता क्या है? मंडी में तो बेच नहीं सकता। बड़े-बड़े कद्दू खा नहीं सकता।’’

राधेश्याम बोला-‘‘अब तो एक ही उपाय है। हर घर की तलाशी ली जाए। कद्दू चोरी हो रहे हैं कोई सूई तो नहीं है जो मिलेगी नहीं।’’ श्रेया बीच में बोल पड़ी-‘‘क्या एक चोर को पकड़ने के चक्कर में घर-घर की तलाशी लेना ठीक है?’’

रामरती बोली-‘‘बिटिया ठीक कहती है। मैं अपने घर की तलाशी क्यों लेने दूं? मैं क्या चोर हूं?’’ श्रेया माधो के पास जाकर बोली-‘‘क्या मैं आपकी मदद कर सकती हूं?’’ यह सुनकर सब हंस पड़े। माधो ने श्रेया के सिर पर हाथ रखते हुए कहा-‘‘नन्ही बच्ची। भला आप मेरी क्या मदद करोगी। ये सब लोग तो कोशिश कर कर के थक गए हैं। पूरे सात दिनों से मेरे खेतों से कद्दू चोरी हो रहे हैं।’’

अलबर्ट जाॅन ने कहा-‘‘आज की रात चोर पकड़ने का मौका श्रेया को दे दिया जाए। अरे! आजकल के बच्चांे का दिमाग कंप्यूटर की तरह चलता है। क्या पता बात बन जाए।’’ श्रेया के पापा भी हैरान थे। वह श्रेया से बोले-‘‘लेकिन श्रेया। तुम्हारा क्या प्लान है? ज़रा मैं भी तो सुनूं।’’ श्रेया बोली-‘‘नहीं पापा। सब कुछ सीक्रेट होगा। चोर बड़ा होशियार है। हो सकता है वह यहीं-कहीं हमारी बात सुन रहा हो। आज तो मैं प्लान करूंगी कि क्या करना है। कल सोचूंगी कि चोर को कैसे पकड़ना है। परसो से चोर कद्दू चोरी नहीं कर सकेगा। यदि करना चाहेगा तो पकड़ा जाएगा। चलो पापा।’’ यह कहकर ऋचा चली गई। 

माधों के खेत से भीड़ छंटने लगी।  दोपहर के बाद शाम हुई और फिर रात हो गई। गांववासी नींद ले रहे थे। अचानक घंटियां बजने लगी। घंटियों की आवाज माधो के खेत से आ रही थी। थोड़ी देर में ही मशाल जलाए कई ग्रामीण माधो के खेत में आ पहुंचे।

राधेश्याम ने हंसते हुए कहा-‘‘ऋचा का प्लान काम आया। चोर ने सोचा होगा कि दो दिन में जितने कद्दू तोड़ लिए जाएं वहीं अच्छा। चोर भला परसों तक क्यों रुकता।’’ तभी ऋचा टार्च हाथ में लिए अपने पापा के साथ आ पहुंची।

अलबर्ट जाॅन ने हैरानी से पूछा-‘‘ये खेत से घंटियों की आवाज कैसे आई?’’ माधो बोला-‘‘मैं बताता हूं। ऋचा बिटिया पतंग उड़ाने वाला मजबूत मांजा ले आई थी। मैंने कई जगह पर मांजा छोड़ दिया था। मांजा का दूसरा सिरा घंटियों पर बंधा था। चोर रात के अंधेरे में पतले धागे को देख नहीं पाया। मांजा चोर के पैर से उलझा और घंटिया बज गईं। ऋचा का कहना है कि यदि चोर नंगे पांव खेत में आया होगा तो उसके पैरों में खरोंचें जरुर आई होंगी।’’

‘‘यदि पैरों में खरोंचें न आई हो तो?’’ अब तक रामरती भी शाॅल ओढ़कर खेत में आ पहुंची थी। ऋचा बोली-‘‘ताई जी। अब सबसे पहले हर घर में चलकर तलाशी ली जानी है। सबसे पहले पैर देखने हैं। बाकि का काम मेरा है।’’ सब झुंड बनाकर चलने लगे। पहले गोपी चाचा का घर आया। फिर रहमत मियां का फिर भगतराम का और फिर दिया ताई का। एक आवाज में हर कोई दरवाजा खोलता और तलाशी में सहयोग करता। दीनू का घर आया तो आवाज लगाने पर भी दीनू ने दरवाजा नहीं खोला। माधो चिल्लाया-‘‘दीनू दरवाजा खोल नहीं तो हम दरवाजा तोड़ देंगे।’’ काफी देर बाद दीनू ने दरवाजा खोला। जम्हाई लेता हुआ बोला-‘‘क्या हुआ? इतनी रात क्यों परेशान कर रहे हो।’’ 

तभी रामरमी बोल पड़ी-‘‘अरे दैया। दीनू ये तेरे पैरों में खरांेच कैसे आई?’’
दीनू सकपकाया। कहने लगा-‘‘वो क्या है न कि मैं तार-बाड़ कर रहा था। बस खरोंच आ गई।’’
‘‘तार-बाड़? तेरे सारे खेत तो बरसों से बंजर हैं। फिर किसकी तार-बाड़ कर रहा था?’’ राधेश्याम ने पूछा।

दीनू बोला-‘‘ये बताना मैं जरूरी नहीं समझता।’’ 

तभी ऋचा बोल पड़ी-‘‘दीनू चाचा। आज माधो चाचा के खेत का कद्दू कहां रखा है?’’ दीनू ने ऋचा को डांटते हुए कहा-‘‘ऐ छोकरी। ज़बान संभाल कर बात कर। तू मुझे चोर समझती है? जा मेरे घर के भीतर की तलाशी ले ले। कद्दू तो क्या कद्दू का बीज तक न मिलेगा। पैरों में खरोंच के आधार पर कोई मुझे चोर साबित नहीं कर सकता। समझी तू।’’

ऋचा टार्च लेकर दीनू के घर के अंदर चली गई। खूंटी पर टंगे कपड़ों को उलट-पलट कर देखने लगी। रामरती ताई ने पूछा-‘‘बेटी ऋचा। इस दीनू के कपड़ों में तू क्या खोज रही है? कद्दू कौन सा कमीज के जेबों में छिपाया होगा इसने।’’ ऋचा खुशी से चिल्लाई-‘‘मिल गया !’’

‘‘हें ! मिल गया? लेकिन मुझे तो नहीं दिखाई दे रहा। कहां है?’’ रामरती ने पूछा। ऋचा ने कहा-‘‘रामरती ताई। ये नीली कमीज है न। इस के बांये काॅलर में ये सफेद-सफेद क्या है?’’ रामरती ने कमीज छूकर देखा। दांये हाथ की अंगूलियों से कमीज को रगड़ा। फिर कहा-‘‘ये तो इसकी कमीज पर राख लगी है। कहीं ये दीनू शमशान घाट पर तो काम नहीं करता?’’ ऋचा हंसते हुए कहने लगी-‘‘ताई जी। दीनू चाचा ने आज माधो चाचा के खेत से कद्दू चुराया है। यही नहीं वह कद्दू को बांये कंधे पर उठा कर लाएं हैं। जरूर कद्दू भी यहीं-कहीं होगा।’’

दीनू बड़बड़ाते हुए भीतर चला आया। कहने लगा-‘‘ये लड़की क्या बकवास कर रही है। तलाशी हो गई हो तो चलो निकलो मेरे घर से।’’ अलबर्ट जाॅन ने पूछा-‘‘ऋचा। कमीज में राख लगी है। ये तो साफ हो गया। लेकिन इससे तुम यह कैसे कह सकती हो कि दीनू माधो के खेत से कद्दू लेकर आया है।’’

 माधो हंसते हुए कहने लगा-‘‘मैं बताता हूं। ऋचा और मैंने खेत के बड़े-बड़े कद्दूओं पर राख मल दी थी। दीनू को रात के अंधेरे में कद्दू तो दिखाई दिया लेकिन उस पर मली राख का मामला यह समझ नहीं पाया। कद्दू भारी था, यह उस कद्दू को कंधे पर उठाकर लाया है।’’ रामरती के हाथ में लाठी थी। इतना सुनते ही रामरती ने दीनू की टांग पर लाठी दे मारी। राधेश्याम ने दीनू का हाथ पकड़ लिया। अलबर्ट जाॅन बोला-‘‘दीनू सच-सच बता कद्दू कहां हैं? क्या कोतवाल को फोन करूं? कोतवाल मेरा दोस्त है। उसके चार लट्ठ पड़ेंगे तो ज़बान सब कुछ सच उगल देगी।’’

दीनू हाथ जोड़ते हुए कहा-‘‘पुलिस तक क्यों जाते हो। घर के पिछवाड़े गड्ढा खोदोगे तो सारे के सारे कद्दू वहीं दबे हुए मिल जाएंगे। क्या करता। गांव में कोई काम नहीं है। मैं अनपढ़ शहर जा नहीं सकता। पेट भरने के लिए कद्दू चोरी करना मुझे आसान तरीका लगा। मौका देखते ही मैं इन कद्दूओं को शहर की मंडी ले जाता। कुछ रुपए मिल जाते तो मेरा कुछ दिनों का काम चल जाता।’’ माधो बोला-‘‘भाई मेरे अपना पेट भरने के लिए दूसरे के खेतों में चोरी करना भला काम है? मेरे साथ मेरे खेतों में काम कर। मजदूरी भी दूंगा और भरपेट भोजन भी।’’

 रामरती हंसते हुए बोली-‘‘ये लो। आए तो थे चोर पकड़ने। यहां तो एक को काम मिल गया और दूसरे का संगी-साथी। ये हुई न बात। अब चलो रात बहुत हो गई।’’ ऋचा के पापा बोले-‘‘लेकिन दीनू। कल सुबह सबसे पहले सारे के सारे कद्दू माधो के घर पर पहुंचा देना। अब हमारी जासूस ऋचा को भी नींद आ रही है।’’ यह सुनकर सब हंस पड़े।

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-मनोहर चमोली ‘मनु’,पोस्ट बाॅक्स-23 भितांई,पौड़ी गढ़वाल. 246001 उत्तराखण्ड.मोबाइल-09412158688