9 नव॰ 2015

वृक्ष कथा: रहस्य आंसूओं का नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

वृक्ष कथा: रहस्य आंसूओं का 

-मनोहर चमोली ‘मनु’

हमेशा की तरह शहजादा सलीम अपने घोड़े में सवाल तिलस्मी नदी के तट पर पहुंच गया। पौ फटते ही समूचा क्षेत्र पक्षियों के कलरव से गूंज रहा था। पूरब की ओर क्षितिज लालिमा लिए हुई सुबह की शुरूआत का संकेत दे चुका था। शहजादा सलीम के घोड़े की टाप से कई जीव-जंतु अपने स्वभाव के मुताबिक हलचल में आ गये थे। शहजादा सलीम जैसे ही तिलस्मी नदी की ओर बढ़ा तो उसे किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी।
सलीम ने अपनी तलवार खींच ली। वह आवाज की दिशा की ओर मुड़ते हुए बोला-‘‘कौन है वहां? सामने आओ।’’ आवाज की सही दिशा का ठीक-ठीक पता नहीं लग रहा था।
हंसती हुई आवाज फिर आई-‘‘शहजादे सलीम। इधर आइए। मैं नीम का वृक्ष हूं। इधर, जिस पर यह हरी-भरी लता लिपटी है। नीम का एक ही वृक्ष है यहां। हां, इधर आओ।’’
शहजादा ने अपनी तलवार म्यान में रख दी और वह नीम के वृक्ष के पास जा पहुंचा।
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘शहजादे सलीम। मैं सोननगर का कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह हूं। सोननगर के राजा यानि मेरे पिताश्री समरवीर प्रताप सिंह समूचे राज दरबारियों के साथ वन विहार का आनंद ले रहे थे। मैं भी उनके साथ था। वापिस लौटते हुए वन किनारे एक कबिलाई बस्ती थी। बस्ती के बच्चे हाथों में पत्थर लिए हुए थे। वह एक विशाल वृक्ष से आम तोड़ रहे थे।
राजन् यह घटनाक्रम देखने के लिए रुक गए।
वह बोले-‘‘एक हम हैं कि अपने सैनिकों को अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण देते हैं। यहां देखिए यह बच्चे बाल्यकाल से ही कुशल प्रशिक्षण खेल-खेल में ले रहे हैं।’’
शहजादा सलीम हंसते हुए बोला-‘‘मैं समझ गया। बच्चे आम के वृक्ष में लगे फलों को तोड़ने के लिए पत्थरों से निशाना साध रहे थे। है न?’’
वृक्ष बोला-‘‘जी बिल्कुल। मैंने जवाब दिया था-’महाराज। ध्यान से देखिए। उस विशालकाय वृक्ष के नीचे एक मुनि साधना में रत हैं। वह इस बात से अनभिज्ञ हैं कि जिस वृक्ष के नीचे वह बैठे हैं, उस के फल स्वतः नहीं गिर रहे हैं बल्कि बच्चों के द्वारा फेंके जा रहे पत्थरों का निशाना बनकर नीचे गिर रहे हैं। मुझे डर है कि कहीं कोई पत्थर मुनिवर के न लग जाए।’ मैंने अभी अपनी बात कही थी कि एक पत्थर मुनि के माथे पर जा लगा। मुनिवर चीख पड़े। सभी बच्चे मारे भय के भाग खड़े हुए। राजन सहित हम दौड़कर मुनि के समीप जा पहुंचे। माथे से खून टपक रहा था। हमारे द्वारा पूछने पर भी मुनिवर मौन रहे। वह संकेतों से अपनी बात कह रहे थे। अचानक मुनि की आंखों से झर-झर आंसू टपकने लगे। राजन ने मुनि को महल का आतिथ्य स्वीकार करने का आग्रह किया। लेकिन वह संकेतों से मना कर चुके थे। हम सभी दुःखी मन से वापिस राजदरबार लौट आए।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘फिर। फिर क्या हुआ?’’
वृक्ष से आवाज आई-‘‘राजन ने दरबार में पूछा-‘क्या कोई मुझे बता सकेगा कि मुनिवर रो क्यों रहे थे?’
दरबार में हर किसी ने अपना-अपना मत प्रस्तुत किया। लेकिन राजन् किसी भी मत से संतुष्ट नहीं थे। अचानक उन्होंने मुझसे कहा-‘कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा अनेक विद्वानों एवं आचार्याें के सानिध्य में हुई है। आपका क्या कहना है।’
शहजादा सलीम ने पूछा-‘‘तो क्या तुमने अपना मत प्रस्तुत नहीं किया?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘क्यों नहीं शहजादे। क्यों नहीं। मैं एक के बाद एक मत प्रस्तुत करता रहा, लेकिन राजन किसी भी मत से संतुष्ट नहीं हुए।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘आपने अपने मत में क्या-क्या तर्क दिये? क्या मुझे बतायेंगे?’’
वृक्ष बोला-‘‘क्यों नहीं। मैंने कहा संभवतः बच्चों को देखकर मुनिवर को अपना बचपन याद आ गया हो। लेकिन राजन् को यह तर्क जंचा नहीं। मैंने दूसरा मत दिया कि हो सकता है कि पत्थर तीव्र वेग से उनके माथे पर लगा है। वे दर्द के कारण रोये हों। इस मत से भी राजन संतुष्ट नहीं हुए। मैंने फिर एक और मत दिया कि चूंकि मुनिवर साधना में लीन थे। संभवतः पत्थर लगने के कारण उनका तप भंग हो गया हो और वह निराशा से भर गए हों। निराशा के चलते वे रोये हों।’ इस मत से भी राजन संतुष्ट नहीं हुए। अचानक उन्होंने मुझे आदेश दे दिया, जिसके परिणामस्वरूप मेरी यह स्थिति हो गई।
शहजादा सलीम बोला-‘‘आपको आदेश में क्या कहा गया।’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘मुझे राजन ने कहा कि मैं अपने विवेक से,समझ से,सम्पर्क से सही तर्क खोज कर लाऊं कि मुनि पत्थर लगने के उपरांत रोये क्यों? इसके लिए मुझे एक माह का समय दिया गया था। आज मध्य रात्रि तक यह समय समाप्त होने वाला है। मुझे दिए गए आदेश में यह भी कहा गया था कि दिये गए समय के उपरांत मेरे लिए महल के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘लेकिन तुम वृक्ष कैसे बन गए?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘जैसा जिसने बताया, जैसा जिसने कहा,मैंने वो किया। इस एक माह में मैं कई मत राजन् के समक्ष रख चुका हूं। लेकिन सब व्यर्थ। मुझे दिया गया एक माह का समय का समाचार पड़ोसी देश तक भी पहुंच गया। उनके एक गुप्तचर ने मुझसे दोस्त कर ली। वह मुझे इस तिलिस्मी नदी तक ले आया। उसी ने मुझसे कहा कि मैं इस नदी का पानी पीने के उपरात दिव्य ज्ञान प्राप्त कर लूंगा। मैंने जैसे ही इस नदी का पानी पिया मैं वृक्ष बन गया।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘ओह! अब तुम्हें पुनः मनुष्य बनाने के लिए क्या करना होगा?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘शहजादे। वह गुप्तचर अभी अपने राज्य की सीमा में प्रवेश नहीं कर पाया होगा। उसके पास मेरा ख़जर है। वह लाकर यदि आप मेरे तने में घोंप देंगे तो मैं वापिस मनुष्य की देह को प्राप्त कर लूंगा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘मैं उसे कैसे पहचानूंगा?’’
वृक्ष के भीतर से आवाज आई-‘‘उसका दांया कान बायां कान से बड़ा है। वह बाएं पैर से लचक-लचक कर चलता है। उसके चेहरे पर चेचक के दाग भी हैं। उसे आसानी पहचान लोगे। लेकिन वक्त कम है। और हा....’’
 लेकिन यह क्या तब तक शहजादा सलीम और उसका घोड़ा तो हवा से बातें करने लगे थे। शाम होने तलक शहजादा गुप्तचर से ख़ज़र वापिस लेकर लौट आया। जैसे ही शहजादे सलीम ने वह ख़ज़र नीम के वृक्ष के तने पर घोंपा,एक कर्कश आवाज़ के साथ ही वृक्ष भरभराता हुआ तिलिस्म नदी में जा गिरा। वृक्ष के स्थान पर सोननगर का कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह खड़ा था।
कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह हाथ जोड़े खड़ा था। उसका गला भर आया। वह भर्राई हुई आवाज में बोला-‘‘मैं जिंदगी भर आपको याद रखूंगा। इस दिवस की अंतिम पहर बाकी है। मुझे राजमहल लौटना होगा, लेकिन मैं राजन् को किस मत से संतुष्ट करूं? कुछ समझ नहीं आ रहा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘चिंता की कोइ्र्र बात नहीं। मैं हूं न। बस मैं जो कहता हूं उसे ध्यान से सुनो। अपना मत प्रस्तुत करने में यह सहायक होगा। अब देर न करो। मेरे साथ मेरे घोड़े में बैठो।’’
शहजादा सलीम का घोड़ा कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह को लेकर हवा से बातें कर रहा था। वह जल्दी ही राजमहल में जा पहुंचे। राजमहल में राजा सोच में डूबे थे। कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह के आने की सूचना मिलते ही राजा आसन से खड़े हो गए। वह बोले-‘‘मैं स्वयं राजमहल के द्वार पर जाऊंगा। यदि एक माह के अंतराल पर भी कुंवर सही तर्क प्रस्तुत नहीं कर सके तो उन्हें यह नगर छोड़ना होगा।’’ राजा समरवीर प्रताप सिंह महल के मुख्यद्वार पर जा पहुंचे। राजा ने पूछा-‘‘कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह एक माह बीतने को कुछ ही क्षण बाकी हैं। कहिए। उस मुनिवर की आंखों में आंसू क्यों आये?’’
कुंवर अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने हाथ जोड़ते हुए जवाब दिया-‘‘महाराज। विनम्रता ही मानव को सज्जन बनाती है। वन में ध्यानमग्न वह मुनि वैरागी हैं। उन्होंने क्रोध पर विजय पा ली है। बच्चों ने वृक्ष पर पत्थर फेंके। बदले में बच्चों को वृक्ष से मीठे फल मिले। लेकिन एक पत्थर मुनिवर के माथे पर जा लगा। मुनिवर का ध्यान टूटा  तो वह सब समझ गए। वह बच्चों को कुछ नहीं दे पाए। यही देख कर मुनिवर की आंखें नम हो गईं। आखिर एक मुनि वन में बच्चों को दे भी क्या सकता है?’’
अखिलेंद्र प्रताप सिंह का उत्तर सुनकर राजा प्रसन्न हो गए। बोले-‘‘कुंवर। तुम्हारी सूझ-बूझ और अनुभव धीरे-धीरे प्रगाढ़ता का आकार ले रही है। अब तुम महल में आ सकते हो। उससे पहले मैं तुम्हें गले लगाना चाहता हूं।’’ राजा समरवीर प्रताप सिंह ने अपने पुत्र कुंवर अखिलेंद्र प्रताप सिंह को गले से लगा लिया। वहीं दूसरी ओर शहजादा सलीम अपने घोड़े पर सवार उसी तिलिस्म नदी को ओर बढ़ गया। किसी को नहीं पता कि कल की सुबह कौन मनुष्य तिलिस्म नदी की गिरफ्त से बाहर आएगा।
000  -मनोहर चमोली ‘मनु’,

4 टिप्‍पणियां:

यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।