9 नव॰ 2015

दीपावली पर विशेष अब अबसेंट नहीं नन्हे सम्राट दिसंबर 2015

दीपावली पर विशेष: अब अबसेंट नहीं


-मनोहर चमोली ‘मनु’

 दीपावली नजदीक आती तो आर्यन उदास हो जाता। यहां तक तो ठीक था, लेकिन वह दीपावली के बाद तीन-चार दिन स्कूल ही नहीं आता।
नई क्लास टीचर रेहाना ने स्टाॅफ रूम में आर्यन को बुलाया। स्टाॅफ रूम में बुलाना स्टूडेन्टस में सनसनी फैला देता था। आर्यन और मायूस हो गया। वह धीरे-धीरे स्टाॅफ रूम की ओर बढ़ने लगा। उसे पता नहीं था कि खिड़की से टीचर रेहाना ने उसे देख लिया था। उम्मीद से अधिक समय बीत जाने के बाद भी जब आर्यन स्टाॅफ रूम के अंदर नहीं पहुंचा तो रेहाना टीचर खुद ही बाहर आ गई। आर्यन दरवाजे की ठीक बाहर खड़ा था।
रेहाना ने चैंकते हुए कहा-‘‘बाहर कब से खड़े हो? अन्दर क्यों नहीं आए?’’ आर्यन की आंखें जमीन पर गड़ी रही। रेहाना ने हौले से आर्यन का बांया कांधा छूआ और उसे अंदर ले गई। आर्यन का उदास चेहरा देख, रेहाना ने प्यार से कहना शुरू किया-‘‘आर्यन। आप अच्छे स्टूडेंट हो। मैं इस स्कूल में नई आई हूं। अब मैं स्टाॅफ रूम में उन स्टूडेन्टस को ही बुलाया करूंगी, जो मुझे अच्छे लगते हैं।’’
अभी तक आर्यन जमीन को घूर रहा था। रेहाना की बात सुनकर वह चैंक पड़ा। वह धीरे से बोला-‘‘आप तो नई हो। आपको कैसे पता कि कौन स्टूडेंट अच्छा है?’’
रेहाना को हंसी आ गई। अपनी हंसी को छिपाते हुए वह बोली-‘‘मैं नर्सरी से लेकर अब तक के अटेंडेंस रजिस्टर देख रही थी। आप रेगुलर स्टूडेंट हो। आपकी अटेंडेंस सबसे अच्छी है। लेकिन हर साल दीपावली के आस-पास तुम अबसेंट रहते हो? क्या बात है?’’
आर्यन रेहाना के मुंह पर देखता ही रह गया। वह हैरान था। अब तक किसी ने इस बात पर कहां ध्यान दिया था कि वह दीपावली के आस-पास क्यों अबसेंट रहता है?
‘‘बोलो। आर्यन,क्या बात है? तुम चुप क्यों हो?’’ रेहाना ने पूछा।
आर्यन चुप रहा। उसकी आंखें बड़ी-बड़ी हो गई। वह पलक झपकाना तक भूल गया। रेहाना समझ गई कि यदि वह जोर देगी तो आर्यन की भीग आईं आंखों से आंसू टपकने लगेंगे।
रेहाना ने बात बदल दी। कहने लगी-‘‘कोई बात नहीं। तुम नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं। बस मैं तुम्हारी अटेंडडेंस से खुश हूं। मैं तुम्हारे लिए एक पेंसिल, एक इरेज़र और एक कटर लाईं हूं। ये लो। इस साल भी तुम्हारी अटेंडेंस बेस्ट होगी तो मैं अच्छा सा गिफ्ट दूंगी। और हां। कुछ भी हो। यदि इस बार दीपावली में तुम अबसेंट नही रहोगे तो मुझे अच्छा लगेगा। अब जाओ।’’
आर्यन दौड़कर अपनी क्लास में जाकर बैठ गया। थोड़ी ही देर में पूरी क्लास को पता चल गया कि रेहाना टीचर ने आर्यन को गिफ्ट में पेंसिल,कटर और इरेजर दिया है। क्यों दिया है? यह किसी को नहीं पता था। 
दीवाली नजदीक थी। आर्यन की उदासी थी कि हर बार की तरह बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन पहली बार किसी ने उसके साथ अपनापन दिखाया था। वह अक्सर रेहाना के बारे में सोचता। उसका मन हर बार एक ही बात कहता-‘‘इतने सालों से किसी ने कहां पूछा था कि वह दीपावली के अवसर पर स्कूल आना बंद क्यों कर देता है। कुछ भी हो। इस बार में एक भी दिन अबसेंट नहीं रहूंगा।’’
यही हुआ। वह रोज़ स्कूल आता रहा। कल से दीपावली की छुट्टियां हो रही थीं। रेहाना टीचर ने क्लास में आईं। कहने लगी-‘‘लिसन टू मी। हैप्पी दीपावली। बट केयरफुल। पटाखे पेरेंटस की परसेंस में ही छुड़ाना। ओके? और हां चार दिन की छुट्टियां हैं। इन्ज्वाय यूअरसेल्फ।’’
‘‘यस मैम।’’ आर्यन को छोड़कर सभी स्टूडेंटस जोर से चिल्लाते हुए बोले। रेहाना टीचर ने देखा कि आर्यन सिर झुकाकर उदास बैठा था। रेहाना टीचर अटेंडेंस रजिस्टर लेकर क्लास से बाहर चली आई। 
चार दिनों की छुट्टियों के बाद स्कूल खुला। जिसे देखो वह दीवाली की ही बात कर रहा था। सभी स्टूडेंटस बढ़ा-चढ़ाकर दीवाली में पटाखे छोड़ने की बात कर रहे थे। प्रातःकालीन सभा के बाद जैसे ही क्लास में अटेंडेंस हुई तो रेहाना टीचर ने आर्यन की ओर मुस्कराते हुए देखा। आर्यन का चेहरा फिर भी उदास था। अटेंडेंस हुई। रेहाना टीचर ने कहा-‘‘तो बच्चों। दीपावली को खूब इन्ज्वाय किया होगा। है न?’’
दीपाली खड़ी हुई-‘‘मैम। इस बार तो मैंने बम भी फोड़ा। बड़ा मज़ा आया।’’
रुखसार बोली-‘‘मैम। मेरे अब्बू ने पूरा राकेट बाॅक्स मुझे दे दिया। कुलविन्दर के साथ हमने बोटल में रखकर राकेट आसमान में छोड़े। बड़ा मजा आया।’’
रैहट स्टीक ने बताया-‘‘मैंम। हम सब पहले चर्च गए। उसके बाद फादर ने हम सभी को एक-एक पैकेट अनार बम का भी दिया। वैरी फनी।’’
मोहित ने बताया-‘‘मैम। हरजिन्दर और अनीस मेरे घर पर पटाखे फोड़ने आए थे। मम्मी ने हमारे लिए कई स्वीट डिश बनाई थी। हमने खूब इंज्वाय किया।’’
एक के बाद एक स्टूडेंटस दीपावली के बारे में बता रहे थे। अचानक रेहाना टीचर ने पूछा-‘‘अरे। आर्यन। तुम भी तो बताओ। तुम्हारी दीवाली कैसी रही?’’
कंवलजीत बीच में ही बोल पड़ा-‘‘ये क्या बताएगा मैम। मैं बताता हूं। आर्यन दीपावली नहीं खेलता। ये बम-पटाखों से दूर ही रहता है।’’ यह सुनकर आर्यन की आंखें भर आई। ऐसा लग रहा था कि बस अभी वह रो पड़ेगा।
तभी रेहाना टीचर ने पूछा-‘‘सोनाली। तुम बताओ। तुम्हारी दीवाली कैसी रही?’’
सारिया ने जवाब दिया-‘‘मैम। दीवाली के दिन ही सोनाली के घर में पटाखों से आग लग गई थी। इसके पापा की डैथ हो गई थी। तब से सोनाली के घर में दीवाली नहीं मनाई जाती।’’
रेहाना टीचर ने कहा-‘‘ओह! साॅरी सोनाली। मुझे पता नहीं था। बाई दि वे। हम सभी को त्योहार केयरफुली मनाने चाहिए। ओके। अभी मैं चलती हूं। मौका मिला तो मैं इंटरवल के बाद आप सभी से बात करने आऊंगी।’’ यह कहकर रेहाना टीचर चली गई। दूसरे ही क्षण मैथ्स पढ़ाने के लिए सक्सेना टीचर आ गए थे। 
इंटरवल हुआ तो आर्यन की उदासी कुछ कम हो गई। वह सुबह से ही गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसे अपने ऊपर गुस्सा भी आ रहा था। वह बार-बार सोनाली की ओर देख रहा था। सोनाली मैथ्स के टीचर सक्सेना जी के पढ़ाने से पहले ही अपने चेहरे की उदासी दूर कर चुकी थी।
सोनाली को अपनी ओर आता देख वह चैंक पड़ा। साथ में सारिया भी थी। सोनाली ने कहा-‘‘आर्यन। हम सभी हैरान है कि तुम पहली बार दीवाली की छुट्टियों के बाद सीधे स्कूल आ गए। जस्ट इमेजिन। क्या तुम दीवाली मनाने कहीं दूर जाते हो? क्या तुम्हारा गांव कहीं ओर है?’’
तभी वहां कंवलजीत आ गया। वह बोला-‘‘ये कहीं नहीं जाता। कहां जाएगा? इस बेचारे के पास कभी पाकेटमनी तक तो होती नहीं। सही बात तो यह है कि इसकी फीस भी बड़ी मुश्किल से पे होती है।’’
सोनाली ने डांटते हुए कहा-‘‘शटअप। कंवलजीत। तूझे शरम भी है कि नहीं। ऐसे बात करते हैं? फिर मैंने आर्यन से पूछा तेरे से नहीं। समझे।’’
कंवलजीत और जोर से बोल पड़ा-‘‘ओए होए। तूझे काहे को मिर्ची लग रही है? अच्छा। अब समझा। तेरी भी सैमपेथी है आर्यन के साथ न। भूखे-नंगे एक साथ। हाहाहा।’’
सारिया ने बीचबचाव करते हुए कहा-‘‘ये ऐसे नहीं मानेगा। चलो हम सब प्रिंसिपल सर के पास चलते हैं। इस स्टूपिड को मैं पहले भी कई बार वार्निंग दे चुकी है।’’
आर्यन धीरे से बोला-‘‘रहने दो। कंवलजीत ने कौन सा कुछ गलत कहा है।’’ यह कहकर वह क्लास की ओर चला गया। सोनाली ने कहा-‘‘क्लास में क्यों जा रहे हो? अभी तो इंटरवल शुरू हुआ है।’’ यह कहकर वह भी क्लास की ओर चल पड़ी। बाकी स्टूडेंटस खेल में मस्त हो गए।
‘‘आर्यन। साॅरी। मुझे यह सब नहीं पूछना चाहिए था। मेरी वजह से ही वो स्टूपिड़ इतना कुछ कह गया।’’ सोनाली ने आर्यन से कहा। 
आर्यन ने धीरे से जवाब दिया-‘‘अरे नहीं। थैंक्स तो मुझे कहना चाहिए था। अब देखो न, यदि मैं आज स्कूल नहीं आता तो मुझे कैसे पता चलता कि तुम भी दीवाली नहीं मना पाती।’’ यह सुनकर सोनाली ने हां में सिर हिलाया।
आर्यन कहने लगा-‘‘मुझे अच्छा-सा लगा कि मैं अकेला नहीं हूं। देखा जाए तो तुम मुझसे बहुत ज्यादा पावरफुल हो।’’ यह सुनकर सोनाली हंसने लगी। 
आर्यन कहता रहा-‘‘मेरे पापा को आंखों से नहीं दिखाई देता। ममा पैर से विकलांग है। घर का गुजारा बड़ी मुश्किल से चलता है। यही कारण है कि हमारे घर में त्योहार भी ठीक से नहीं मनायें जाते। आस-पास भी हमारे जैसे ही लोग रहते हैं। वो तो स्कूल भी नहीं जाते। कम से कम मैं तो स्कूल आता हूं। लेकिन बम-पटाखों की गूंज मेरे कानों में पड़ती है, तो मैं सोचता हूं कि मैं कब खुशियों भरी दीवाली मनाउंगा।’’
सोनाली ने बीच में टोकते हुए कहा-‘‘ये क्या बात हुई। आर्यन मेरे तो पापा भी नहीं रहे। मेरी दो सिस्टर्स भी हैं। ममा घर में अखबारों को लिफाफे बनाती है। शाॅपकीपर उन्हें खरीदते हैं। इसीसे हमारा खर्चा चलता है। मुझे जितना समय मिलता है, मैं भी ममा की मदद करती हूं। मेरी सिस्टर्स भी हेल्प करती हैं। हम भी इस तरह बम पटाखे छोड़कर दीवाली नहीं मनाते। हम भी हर साल नये कपड़े नहीं बना सकते। हमें पता है कि पूजा-पाठ करके, व्रत रखकर, लक्ष्मी पूजन करने से धन नहीं आता। धन तो मेहनत से कमाया जाता है। लेकिन हम दीया जलाते हैं। हर साल अपने कच्चे मकान की पुताई नहीं कर सकते तो क्या हुआ। उसकी चारों ओर से सफाई तो कर सकते हैं। हम यह करते हैं।’’
यह सुनकर आर्यन चुप रहा। धीरे से बोला-‘‘तभी तो। मुझे देखो। मैं हर साल किसी भी त्योहार के आने से पहले निराश हो जाता हूं। परेशान हो जाता हूं। दीवाली से पहले राखी आई तो मैं रोने लगा। हम दो भाई हैं। अकुल मुझसे छोटा है। सब अपनी बहनों को राखी पहना रहे थे। बदले में भाई अपनी बहनों को रुपए दे रहे थे। एक हम है कि हम दोनों भाईयों की कलाई सूनी रहती है। फिर हम बदले में किसी को रुपए भी कहां दे सकते हैं।’’
सोनाली ने धीरे से कहा-‘‘डोंट वरी। अबकी राखी में मैं तुमहारे हाथ में राखी बांधूंगी। अकुल के भी। आज से तू मेरा भाई हुआ।’’ आर्यन का चेहरा खुशी से चमक उठा। 
आर्यन ने कहा-‘‘ठीक है। अब आगे से हम दीवाली भी साथ मनाएंगे। तू रहती कहां हैं?’’
सोनाली ने बताया-‘‘नहर वाली गली में। सबसे लास्ट में। जहां झोपड़ियां हैं। हमारा कच्चा मकान सबसे लास्ट में है। वहां एक बड़ा पीपल का पेड़ है।’’
आर्यन ने कहा-‘‘वहीं तो जहां एक बड़ा मैदान है। जहां ट्रक खड़े रहते हैं। बच्चे पतंग उडाते हैं।’’ 
सोनाली ने एक दम कहा-‘‘हां-हां। वहीं पे। तू वह जगह जानता है?’’
आर्यन ने कहा-‘‘हां। छुटटी के दिन में नहर पे आता हूं। धोबियों के कपड़े सुखाने में मदद करता हूं। उस दिन मुझे 100 रुपए मिल जाते हैं। नहर वाली गली से पहले जो मुस्तफा धोबी वाली गली है न, वहीं हम रहते हैं। पीली वाली कोठी के पीछे। पुराना मकान है। हम वहां किराये पर रहते हैं।’’ 
सोनाली ने कहा-‘‘हां। हां। मैंने देखी है पीली वाली कोठी। पीली वाली कोठी से पहले जो करयाना स्टोर है। वहां मैं लिफाफे बेचने आती हूं। हर संडे।’’
आर्यन ने कहा-‘‘ये लिफाफे कैसे बनते हैं?’’
सोनाली ने कहा-‘‘वैरी सिंपल। मैं तूझे अभी सिखा देती हूं। तू एक दो दिन हमारे घर आ जा। अलग-अलग साइज के अलग पैसे मिलते हैं। मैं तूझे अकील कबाड़ी की दुकान भी दिखा दूंगी। बस वहां से पुराने अखबार खरीदने हैं। आटे की लेही घर में बनानी है, और हो जाएगा लिफाफे बनाने का काम। सौ लिफाफे के हमें बीस रुपए आसानी से मिल जाते हैं। हम घर में आराम से एक हजार लिफाफे बना लेते हैं। संडे के दिन तो हम दो हजार लिफाफे बना लेते हैं।’’
आर्यन ने कहा-‘‘ठीक है। इस संडे में आता हूं।’’ 
आर्यन संडे को सोनाली के घर गया। अब यह सिलसिला चल पड़ा। आर्यन और सोनाली के परिवार वाले भी इस मेलजोल से प्रसन्न थे। आर्यन के घर में भी लिफाफे बनाने का काम चल पड़ा। आर्यन को आमदनी का यह साधन अच्छा लगा। घर में जो भी लिफाफे बनाये जाते, उन्हें बेचने आर्यन ही जाता। बदले में उसे पांच रुपए मिलते। उसने एक पिगी बैंक खरीद लिया था। अब वह सारे सिक्के पिगी बैंक में जमा करने लगा। 
एक दिन उसने हिसाब लगाया-‘‘साल में तीन सौ पेंसठ दिन होते हैं। अगर तीन सौ दिन के हिसाब से भी मुझे पांच रुपए मिलते रहे, तो यह एक हजार पांच सौ रुपए हो जाएंगे। इस बार की दीवाली मजे में मनाई जाएगी। मैं सोनाली के साथ दीवाली मनाउंगा। बड़ा मजा आएगा।’’ 
वहीं सोनाली भी कुछ ऐसा ही सोच रही थी। वह भी एक-एक रुपया जोड़ रही थी। उसने भी मन बना लिया था कि बरसों से जो त्योहार घर में नहीं मनाया जाता,अब वह आर्यन के सहयोग से मनाया जाएगा। दोनों परिवार साथ-साथ दीवाली मनाएंगे। वह सोच रही थी कि घर में वह अपनी सहेलियों को बुलाएगी। 
सब कुछ ठीक तरह से चल रहा था। एक दिन की बात है। सोनाली ने स्कूल जाते हुए आर्यन से कहा-‘‘दीवाली को एक महीना ही रह गया है।’’
आर्यन ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘हां। लेकिन अब मैं दीवाली के दिनों में छुट्टी नहीं करुंगा। इस बार मैम को मैं भी बताउंगा कि मैंने दीवाली कैसे मनाई। क्या तुम मेरे साथ दीवाली मनाओगी?’’ सोनाली ने हां में सिर हिलाया।
आज सब पीछे मुड़-मुड़कर देख रहे थे। सोनाली के साथ-साथ आर्यन भी उनकी क्लास में आई नई स्टूडेंट को देखकर हैरान हो रहे थे। प्रातःकालीन सभा में प्रिंसिपल ने बताया था-‘‘बच्चों। भूकंप की वजह से कई घर तबाह हुए हैं। हमारे स्कूल में भी कुछ बच्चे आएं हैं। यह सब भूकंप में अपना सब कुछ खो चुके हैं। हमें इनकी मदद करनी होगी। जिस क्लास में यह स्टूडेंटस पढ़ेंगे, हम सब उनको कोओपरेट करेंगे।’’
इंटरवल हुआ तो सब मैदान में बैठे हुए थे। रुखसार ने कहा-‘‘ये मिड सेशन में नए स्टूडेंटस स्कूल में आ गए हैं। ये क्या पढ़ेंगे और क्या एग्जाम देंगे?’’
कुलविन्दर बोला-‘‘भूंकम राहत है भई। सुना नहीं तुमने, हमें उनकी हैल्प भी करनी है।’’ रैहट स्टीक ने कहा-‘‘यार! हम क्या हैल्प करेंगे? अपना पाॅकेट मनी इन भूख-नंगों को दे दें क्या?’’ 
मोहित ने कहा-‘‘स्कूल मैनेजमेंट करे। कौन रोकता है?’’ 
कंवलजीत ने देखा कि आर्यन और सोनाली उसकी ओर आ रहे हैं। वह बोला-‘‘आईडिया। ’’आर्यन और सोनाली भी तो उसी केटेगरी के हैं। जिस केटेगरी के कुछ बच्चे हमारे स्कूल में आ गए हैं। यह करेंगे न उनकी हैल्प।’’
यह सुनकर सब हंस पड़े। सोनाली और आर्यन ने एक दूसरे का मुंह देखा और चुपचाप अपनी क्लास में जाकर बैठ गए। 
दीवाली से दो दिन पहले तक तो सब कुछ ठीक था। लेकिन फिर न आर्यन स्कूल आया और न ही सोनाली। दीवाली की छुट्टियां हो गईं। स्कूल खुला तो रेहाना मैडम ने क्लास में कहा-‘‘स्टूडेंटस कैसी रही दीवाली? इससे पहले कि तुम सब वन बाई वन सबको बताओ,मैं आर्यन से पूछना चाहती हूं कि वह दीवाली से पहले दो दिन अबसेंट क्यों रहा। उसके बाद सोनाली बतायेगी कि वो भी अबसेंट थी। क्यों?’’
आर्यन सिर झुकाए खड़ा था। वह धीरे से बोला-‘‘मैम। पिछले एक महीने से मैं लिफाफे बना रहा था। उन लिफाफों को बनाने के लिए समय चाहिए था। स्कूल से जाने के बाद होमवर्क करने के बाद जितना टाईम मिलता था, हम यह काम करते थे। लेकिन दीवाली के अवसर पर हमे हजारों लिफाफे बनाकर देने थे। हमने कमीटमेंट किया था।’’
रेहाना मैडम बोली-‘‘कमीटमेंट तो तुमने भी किया था। यही कि अब तुम अबसेंट नहीं रहोगे? फिर?’’
आर्यन ने कहा-‘‘मैम। हमारी क्लाॅस में पिछले ही महीने दो स्टूडेंटस नए आए हैं।’’
रेहाना ने कहा-‘‘हां। हां। ज़हीना और शैफाली। तो क्या हुआ?’’
आर्यन ने कहा-‘‘मैम। मैंने और सोनाली ने ज़हीना और शैफाली के साथ उन सभी बच्चों के साथ दीवाली मनाई है, जो आपदा राहत कैंप में रह रहे हैं।’’
ज़हीना और शैफाली खड़ी हो गई। वे दोनों एक साथ बोली-‘‘मैम। सोनाली और आर्यन ने पूरे कैंप में सब बच्चों के लिए मिठाई दी। हम सबने मिलकर दीये जलाये। साउंडप्रुफ पटाखे छोड़े।’’
ज़हीना ने बताया-‘‘मैम। इन दोनों ने साल भर से अपनी दीवाली मनाने के लिए जो रुपए अपने पिगी बैंक में जमा किये थे, वो भी हमारे लिए खर्च कर दिये ।हम सबके लिए ये स्कूल बैग्स लाए। काॅपीज़ लाये। कुछ के लिए इन्होंने शूज़ भी खरीदे।’’
रेहाना मैम के साथ-साथ क्लास में तालियां बजने लगी। दरवाजे पर प्रिंसिपल के साथ आपदा राहत कैंप के मैनेजर भी खड़े थे।
प्रिंसिपल ने कहा-‘‘हमने तो कहा था। सोनाली और आर्यन ने कर दिखाया। डीएम सर ने स्पेशल दीवाली गिफ्ट भिजवाएं हैं। सोनाली के लिए भी और आर्यन के लिए भी। हमारे स्कूल को भी दस हजार रुपए की हैल्प भिजवाई है। हमें गर्व है कि सोनाली और आर्यन ने वो कर दिखाया, जिसकी वजह से हमारे स्कूल पर न्यूज टीवी चैनलों पर आने वाली है। बधाई।’’
रेहाना टीचर ने मुस्कराते हुए कहा-‘‘स्कूल मैनेजमेंट भी इन दोनों को पुरस्कृत करेगा?’’
प्रिंसिपल ने कहा-‘‘बिल्कुल। कल प्रातःकालीन सभा में हम सब स्टूडेंटस से अपील भी करेंगे कि त्योहार मनाने का असली कंसेप्ट आर्यन और सोनाली से सीखें। हमारा मन और हमारा मस्तिष्क दया भाव से भरा हो। हम शांत भाव से केवल अपने और अपने परिवार का ही भला न सोंचे। अपने आस-पास भी खुशियां देंखे। यदि आस-पड़ोस में कोई खुश नहीं है तो हम कैसे दीवाली मना सकते हैं? यह हमने इन बच्चों से सीखा। मैं इन्हें सैल्यूट करती हूं।’’
समूची क्लास सोनाली-आर्यन। सोनाली-आर्यन। का नाम पुकार-पुकार कर अपनी खुशी ज़ाहिर करने लगे। वहीं सोनाली और आर्यन की आंखें नम थी। सोनाली ने एक कागज की पर्ची में कुछ लिखा और आर्यन की ओर उछाल दिया।
आर्यन ने पर्ची खोली-‘‘पर्ची में लिखा था। अब अबसेन्ट कभी नहीं।’’
आर्यन ने सोनाली की ओर देखा। बिल्कुल। अब अबसेन्ट कभी नहीं। शायद आर्यन भी यही सोच रहा था। 
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मनोहर चमोली ‘मनु’,भितांई,पोस्ट बाॅक्स-23,पौड़ी 246001 उत्तराखण्ड। मोबाइल-09412158688

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