12 अप्रैल 2016

नन्हे सम्राट, मई 2016. वृक्ष कथा: कौन बढ़ेगा आगे कौन रहेगा पीछे?

नन्हे सम्राट, मई 2016.


वृक्ष कथा: कौन बढ़ेगा आगे कौन रहेगा पीछे?


-मनोहर चमोली ‘मनु’


हमेशा की तरह शहजादा सलीम किसी की मदद कर वापिस तिलस्मी नदी के किनारे आ पहुंचा। रात भर घोड़ पर सवार शहजादा सलीम थक चुका था। वह चाहता था कि भोर होने से पहले वह कुछ पल आराम कर ले। उसने अपने घोड़े को एक पेड़ के तने से बांधा और नदी किनारे आरामदायक घास पर आराम की मुद्रा में लेट गया। कुछ ही क्षणों में उसे नींद आ गई। वहीं अपने नियत समय पर पौ फटते ही समूचा वन क्षेत्र पक्षियों के कलरव से गूंजने लगा। पूरब की ओर क्षितिज लालिमा लिए हुई सुबह होने का संकेत दे चुका था। अचानक शहजादा सलीम का घोड़ा हिनहिनाने लगा। किसी खतरे की आशंका के चलते शहजादा उठ खड़ा हुआ। उसने झट से अपनी तलवार खींच ली। शहजादे ने यहां-वहां देखा लेकिन उसे कोई नहीं दिखाई दिया। वह उनींदी में उठा और नदी की ओर चल पड़ा। वह भूल गया था कि तिलस्मी नदी का जल पीना खतरे से खाली नहीं। वह पानी की छपकी अपने चेहरे पर डालकर तरोताज़ा होना चाहता था। वह जैसे ही नदी के तट पर पहुंचा और जल की ओर झुका ही था कि एक पुरुष स्वर ने उसे रोक दिया। स्वर था-‘‘हे युवक। यह तिलस्मी नदी है। जल को छूना खतरे से खाली नहीं है। मुझे देखो, मैं यहां वृक्ष बना खड़ा हूं। क्या तुम भी वृक्ष बनना चाहोगे।’’

शहजादा ठिठका और दूसरे ही क्षण उसने अपने कदम पीछे खींच लिए। वह बोला-‘‘ओह! थकान ने मेरे सोचने-समझने की ताकत भी छीन ली। मैं तो इस तिलस्मी नदी के स्वभाव को जानता हूं।’’ शहजादा वृक्षों की ओर देखकर बोला-‘‘हे वृक्ष बन चुके पुरुष अपना परिचय दो। यह भी बताओ कि तुम वृक्ष कैसे बन गए? मैं शहजादा सलीम हूं।’’

स्वर ने कहा-‘‘शहजादा सलीम मेरा अभिवादन स्वीकार करें। मैं चतुरसेन हूं। काशीपुर के राजा केशवराज का सलाहकार। मैं किसी बुद्धिमान की तलाश में यहां से गुजरा और प्यास के चलते इस तिलस्मी नदी का जल पीने से बरगद का वृक्ष बन बैठा। मैं जिस समस्या के चलते यहां तक पहुंचा, उसी समस्या के निराकरण के पश्चात ही मुझे वृक्ष रूप से मुक्ति मिल सकेगी।’’

शहजादा सलीम बोला-‘‘आप तो सलाहकार हैं। फिर किसी बुद्धिमान की तलाश क्यो?’’

बरगद के वृक्ष से आवाज आई-‘‘शहजादे। काशीपुर के राजा केशवराज के दो राजकुमार हैं। एक का नाम है उदयराज है। दूसरे का नाम कंवलराज है। काशीपुर के राजा केशवराज किसी एक को राजगद्दी सौंपना चाहते हैं। पिछले एक बरस से उदयराज और कंवलराज काशीपुर के भ्रमण पर थे। जव वे लौटे तो राजमहल के मुख्य मार्ग में आने से पूर्व दोनों के रथ आमने सामने आ गए। दोनों के सारथी एक दूसरे को रास्ता देने क अनुरोध करने लगे। रास्ते से एक को अपना रथ पीछे कर हटना होगा, तभी दूसरा रथ मार्ग पर आगे बढे़गा। दोनों राजकुमार एक दूसरे को रास्ता देने पर अड़ गए। ’’

शहजादा सलीम मुस्कराया। कहने लगा-‘‘फिर क्या हुआ?’’
बरगद के वृक्ष से आवाज आई-‘‘शहजादे। दोनों के रथ आमने-सामने आज भी खड़े हैं। उदयराज और कंवलराज रथ से उतर कर राजमहल जा पहुंचे लेकिन किसी को भी अपना रथ पीछे हटना मंजूर नहीं था। अब राजा केशवराज के समक्ष समस्या यह है कि वह यह निर्णय नहीं कर पा रहे हैं कि मार्ग पर खड़े दोनों रथों के किस सारथी को अपना रथ पीछे करना होगा और किसे पहले आगे बढ़ने का सममान मिलेगा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘ओह! तो यह वर्चस्व को लेकर प्रतिष्ठा-मान-समामान का प्रश्न बन गया है। मुझे इन दोनों राजकुमार के स्वभाव और विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताओ।’’  

बरगद के वृक्ष के भीतर से चतुरसेन ने दोनों राजकुमारों के बारे में शहजादा सलीम को विस्तार से बताया। चतुरसेन ने कहा-‘‘शहजादे सलीम। मुझे यकीन है कि आप मुझे वृक्ष रूप से मुक्ति दिला सकोगे। इस तिलस्मी नदी ने मुझे शाप दिया है कि जब तक राजकुमारों के रथ न्यायसंगत और तर्कसंगत रूप से उन दोनों राजकुमारों के संतुष्ट होने पर आगे बढ़ेंगे तभी मैं वृक्ष काया से अपने असले रूप में आ सकूंगा। जैसे ही यह होगा, मैं चतुरसेन हो जाउंगा और आपके आने पर ही यहां से प्रस्थान करूंगा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘आचार्य चतुरसेन। मैं पूरा यत्न करूंगा। आप तो मुझे शुभकामनाएं दें।’’
बरगद का वृक्ष झूम उठा। वृक्ष के भीतर से चतुरसेन बोला-‘‘मैंने जिस तरह से सारी कथा आपको सुनाई है। तत्पश्चात जिस कौतूहल और जिज्ञासा से आपने राजन और राजकुमारों के बारें में विस्तार से जानना चाहा है निश्चित रूप से आप संकरे मार्ग में रुके हुए उन दोनों राजकुमारों के रथ को उचित मान-सममान देकर आगे बढ़ने के लिए बाध्य कर देंगे। अविलंब जाओ। मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। आप चतुरसेन का नाम लेंगे तो राजन आपको सीधे निजी कक्ष में बुलाएंगे। मुझे पूरा भरोसा है।’’

दूसरे ही क्षण शहजादा सलीम अपने घोड़े पर सवार था। सलीम का घोड़ा तेज गति से काशीपुर की ओर बढ़ने लगा। 
वही हुआ। शहजादा सलीम महल के द्वार पर पहुंचा ही था कि द्वारपाल ने रोकते हुए पूछा-‘‘हे। अजनबी घुड़सवार आप बिना राजा की अनुमति के राजमहल में प्रवेश नहीं कर सकते। कृपया पहले अपना परिचय दें।’’

शहजादा सलीम बोला-‘‘मुझे चतुरसेन ने भेजा है। मैं तिलस्मी नदी के तट पर बरगद का वृक्ष बन चुके चतुरसेन का मित्र सलीम हूं। समय कम है। मेरी सूचना राजन तक पहुंचा दें। यदि वे मिलना चाहेंगे तो उचित है अन्यथा मैं लौट जाउंगा।’’

द्वारपाल ने दौड़कर सूचना राजा केशवराज को दी। दूसरे ही क्षण महामंत्री दौड़ता हुआ द्वार पर आ पहुंचा। वह बोला-‘‘सलीम। अभिवादन। हमारे राज्य में आपका स्वागत है। राजन अपने शयनकक्ष में ही आपसे मिलना चाहते हैं। चलिए शयनकक्ष के द्वार तक मैं आपको छोड़ सकता हूं।’’ शहजादे का घोड़ा अस्तबल के रक्षक ने अस्तबल तक सुरक्षित पहुंचा दिया। वहीं दूसरे ही क्षण शहजादा सलीम राजा केशवराज के निजी शयनकक्ष में पहुंच गया था। राजा केशवराज ने बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया। सारा किस्सा जानकर शहजादा सलीम ने राजन का ढाढस बंधाते हुए कहा-‘‘राजन। कल सुबह दोनों राजकुमारो सहित मुझे आपके राज्य के चारों दिशाओं के चालीस-चालीस प्रबुद्ध नागरिक भी उस संकरे मार्ग पर उपस्थित चाहिए, जो दोनों राजकुमारों के काम-काज से वाकिफ हों।’’ राजा केशवराज बोले-‘‘आप चिंता न करें शहजादे सलीम। सब कुछ आपके अनुसार ही होगा।’’

सुबह हुई तो उसी संकरे मार्ग पर राजकुमार उदयराज और कंवलराज अपने अपने रथ पर सवार हो गए। मंत्री,महामंत्री,राजपुरोहित,महारानी और स्वयं राजा केशवराज भी उस मार्गस्थल पर आ पहुंचे। दोनों सारथी पहले की तरह अपने-अपने रथों पर सवार हो गए। राज्य काशीपुर की चारों दिशाओं से आए नागरिक भी यहां-वहां खड़े हो गए। शहजादा सलीम भी अपने घोड़े पर सवार था। 
शहजादा सलीम ने सारथियों से कहा-‘‘अपने अपने रथ आगे बढ़ाइए।’’

राजकुमार उदयराज का सारथी बोला-‘‘रास्ता संकरा है। एक रथ को पीछे हटकर रास्ता छोड़ना होगा। तभी दूसरा रथ आगे बढ़ सकेगा।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘तो फिर एक रथ पीछे हटे और दूसरे को रास्ता दे दे।’’
अब कंवलराज का सारथी बोला-‘‘यही तो समस्या है। यही तो तय होना है कि किस राजकंुवर का रथ आगे बढ़े और किस राजकुंवर को अपना रथ पीछे करना होगा। समस्या तो जस की तस बनी है।’’
शहजादा सलीम बोला-‘‘जिस रथ की नक्काशी बेहतरीन है। बहुमूल्य है। उसे आगे बढ़ने दो।’’
स्वर्णकार बुलाए गए। आंकलन किया गया। यह क्या! दोनों ही रथ एक समान मूल्यवान निकले।
शहजादा सलीम बोला-‘‘जो राजकुमार सदाचारी है,उसका रथ आगे बढ़ेगा।’’

राजपुरोहित बुलाया गया। आचार्य बुलाए गए। उनके मूल्यांकन के आधार पर दोनों राजकुमार एक समान सदाचारी पाए गए। 
शहजादा सलीम बोला-‘‘जो आयु में छोटा है, वह बड़े को रास्ता दे। बड़े के रथ को रास्ता दिया जाएगा।’’
महारानी आगे आईं। कहने लगी-‘‘उदयराज और कंवलराज जुड़वा है। वह ठीक एक ही घड़ी में पैदा हुए हैं। रूप, भार और सौंदर्य में भी वे एक समान हैं।’’
शहजादा सलीम ने कहा-‘‘तो ठीक है। अब निर्णय रथ के सारथी करेंगे। पिछले एक मास से दोनों राजकुमार राज्य का भ्रमण कर रहे थे। सारथी पल-पल अपने-अपने राजकुमार के साथ थे। वे ही बताएं कि उनके राजकुमार की क्या खास विशेषता एक राजा के तौर पर वे देखते हैं।’’

राजकुमार उदयराज का सारथी कहने लगा-‘‘मेरे राजकुमार महान हैं। वे शठे शाठ्यं समाचरेत् की नीति का पालन करते हैं। दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करते हैं। भले के साथ भला और बुरे के साथ बुरा करते हैं।’’ उपस्थित जन समुदाय में कुछ ने करतल ध्वनि से राजकुमार उदयराज का पक्ष लिया। 
अब कंवलराज के सारथी ने कहा-‘‘मेरे राजकुमार अच्छे का साथ अच्छा व्यवहार करते हैं और बुरे के साथ भी अच्छा व्यवहार करते हैं। यह बुरों को भी अच्छा बनाने का सफल प्रयास करते हैं। इन्होंने कई अपराधियों के साथ अच्छा व्यवहार कर उनका मन जीता है।’’ यह क्या! इतना सुनते ही चारो दिशाओं से आई प्रजा कंवलराज के पक्ष में जयकरे लगाने लगी। वहीं दूसरी विचित्र बात यह हुई कि उदयराज ने अपने सारथी को आज्ञा देते हुए कहा-‘‘सारथी। हमारा रथ पीछे करो। आगे बढ़ने का पहला हक भ्राता कंवलराज का है।’’
दूसरे ही पल उदयराज के सारथी ने रथ पीछे हटाया। संकरे रास्ते के एक किनारे पर रथ को खड़ा किया, वहीं राजकुमार कंवलराज के रथ को मार्ग खुला मिला और वह आगे बढ़ता चला गया। 

पूरे प्रकरण की साक्षी जनता शहजादे सलीम को आदर भाव से निहार रही थी। इससे पहले कि राजा केशवराज शहजादे सलीम को धन्यवाद कहते, वह तेज गति से अपने घोड़े पर सवार होकर तिलस्मी नदी की ओर बढ़ चुका था। शहजादा सलीम जानता था कि राजा केशवराज का सलाहकार चतुरसेन बरगद के वृक्ष का रूप त्यागकर अपने मनुष्य रूप में आ चुका होगा। इससे पहले कि तिलस्मी नदी के आस-पास चतुरसेन के साथ कोई और अप्रिय घटना घटे, वह उसे सुरक्षित उस तिलस्मी क्षेत्र से बाहर जो निकालना चाहता था।  
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Manohar Chamoli 'manu'

14 टिप्‍पणियां:

  1. Mujhe tilism ki kahaniyan bahut pasand hai. Kya aap tilism ki kuchh kitabo ka naam bata sakte hain?

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  2. आपके पत्रिका में कभी लाल किरण सीरीज की कहानियां प्रकाशित होती थी। क्या आप उनसभी कहानियों की लिंक दे सकते हैं ?

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  3. Me is Patrika ko apne ghar mangana chahta hu har mah mujhe iska tareeka batayein

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    1. Darasal aap aisa ab ni kr skte nanhe samrat Dewan publishers ke madhiyam se logo tk pahuchai jati rhi thi, jiska prakashan Dewan publishers ne April 2020 mein band kr dia h aapko ab kisi dusre madhiyam se nanhe samrat ko prapt Krna hoga.

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  4. Ye nanhe samrat mein virksha katha akhir kis kitab se li gayi h, main poori kahani kaise dhondi? Kripya sahayata karein! Dhanyawad

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यहाँ तक आएँ हैं तो दो शब्द लिख भी दीजिएगा। क्या पता आपके दो शब्द मेरे लिए प्रकाश पुंज बने। क्या पता आपकी सलाह मुझे सही राह दिखाए. मेरा लिखना और आप से जुड़ना सार्थक हो जाए। आभार! मित्रों धन्यवाद।