2 अप्रैल 2016

'बंद हुआ हंसना',-मनोहर चमोली ‘मनु’,बाल कहानी,जनसत्ता child literature

बंद हुआ हंसना 

-मनोहर चमोली ‘मनु’

जूते हंसने लगे तो जुराब ने पूछ लिया-‘‘हंस क्यों रहे हो?’’

 बांया जूता बोला-‘‘अपनी हालत तो देखो।’’

 दांये जूते ने इशारा किया-‘‘तुम्हारे भीतर से अंगूठा बाहर झांकने लगेगा। अब तुम पहनने लायक नहीं रहे।’’ जुराब ने खुद को देखा तो परेशान हो गया। जुराब बोला-‘‘दूसरों पर हंसना अच्छी बात नहीं।’’ 
तभी आशमां आई और जुराब पहनने लगी। जुराब के भीतर से अंगूठा झांक रहा था। आशमां ने जुराब उतारा और सुई-धागे से फटी जगह को सिल लिया। जुराब पहनकर उसने जूते पहन लिए।
 जुराब ने जूते से कहा-‘‘देख लो। आशमां ने हमें पहन लिया है।’’ जूते झेंप गए।
एक दिन जूते फिर हंसने लगे। जुराब ने पूछा-‘‘क्या हुआ?’’
 बांया जूता बोला-‘‘अपनी हालत देखो। ढीले हो गए हो। आशमां पहनेगी तो तुम लटककर एड़ी पर झूलने लगोगे।’’ 

जुराब खुद को देखने लगे और उदास हो गए। आशमां आई और जुराब पहनने लगी। दोनों जुराब वाकई पैरों की पिंडलियों से एड़ी पर आ गए। इस बार आशमां ने जुराब नहीं उतारे। वह रबड़बैंड ले आई। उसने जुराब के ऊपरी सिरों पर रबड़बैंड चढ़ा लिए। अब जुराब खिसक नहीं रहे थे। आशमां ने जूते पहने और घूमने चली गई। एक जुराब जूतों से बोला-‘‘देखा लिया ! आशमां ने हमें उतारा नहीं। हमारे ढीलेपन का उपाय खोज लिया गया।’’ जूते बगले झांकने लगे।

एक दिन फिर जूते हंसने लगे। जुराब ने पूछा-‘‘अब क्या हुआ?’’ 
दांया जूता बोला-‘‘खुद को देखो। तुम दोनों एड़ियों से फट चुके हो।’’ 
बांया जूता चिढ़ाते हुए बोला-‘‘अब तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। आशमां तुम्हें नहीं पहनेगी। देख लेना।’’ 

आशमां आई और जुराब पहनने लगी। एड़ियों से जुराब वाकई फट चुके थे। आशमां ने जुराबों को उलटा। पलटा। कुछ देर सोचा। आशमां ने जुराबों को अच्छी तरह से धोया। सुखाया। रंग-बिरंगे-सुनहरे धागों से जुराबों मंे कड़ाई की। जुराबों में रुई भरी। अब जुराब आशमां के कमरे में सज-धज कर मुस्करा रहे थे। वहीं जूते दरवाजों के पीछे अंधेरे कोने में चुपचाप पड़े थे। अब जूतों ने जुराबों पर हंसना बंद कर दिया। ॰॰॰
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